Module 5

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Module Five – Advertisement Industry

विज्ञापन उद्योग

Advertisement Industry

 

Ads Makes the Market Move

Module 5.1

विज्ञापन उद्योग -1

बाज़ार को रफ्तार देते विज्ञापन

 

विज्ञापन कितने और कैसे?

नीलसन कंपनी द्वारा कराए गए एक सर्वे से पता चलता है कि भारत में 2010 के पहले 4 महीनों में टीवी, अखबारों और मैगजीनों में दिए गए विज्ञापनों पर खर्च करीब 32 प्रतिशत बढ़ गया था। बढ़त पर नज़र डालें तो मार्च 2010 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि जहां अखबारों में विज्ञापनों पर खर्च करीब 30 प्रतिशत  बढ़ा, वहीं टेलीविजन इंडस्ट्री में 26% का इजाफ़ा हुआ, जो एशिया पैसेफिक की 12 मार्केट्स में सब से ज्यादा है। एक कंपनी अपना विज्ञापन या कैंपेन मीडिया में लांच करने से पहले महीनों का सफ़र तय करती है। कभी कभी तो साल भी लग जाता है। विज्ञापन लांच करने के पीछे कई कारण होते हैं। उत्पाद की बिक्री घट जाना, उत्पाद पर कोई नया ऑफ़र या छूट, अक्सर ऐसे कारणों से जब कोई कंपनी विज्ञापन लांच करती है, तो उस से पहले मार्केट सर्वे या रिसर्च भी कराती है। रिसर्च के निष्कर्ष के मुताबिक फैसला लिया जाता है। भारत में वे विज्ञापन ज्यादा पसंद किए जाते हैं, जिन्हें लोग अपने परिवार के साथ बैठ कर देख सकें। रिसर्च से ऐसी बातें भी सामने आती हैं कि भारतीय किसी भी तरह की बरबादी को उचित नहीं समझते। शायद यही वजह है कि री-फ़िल या री-चार्ज वाली पैकिंग्ज़ एक बार इस्तेमाल कर फेंकने वाले पैकिंग्ज़ से ज्यादा बिकती हैं।

पैकेजिंग का कमाल

कभी कभी रिसर्च से कुछ नए तरह के उपाय भी सामने आते हैं। कंपनियां अपनी सेल बढ़ाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाती हैं। कंपीटिशन में बने रहने के लिए लाखों रुपए भी खर्च करने पड़ते हैं। ऐसा ही कुछ साल पहले कैडबरी के साथ हुआ। कुछ पैकेट्स में कीड़े निकलने की वजह से कंपनी की काफ़ी  बदनामी हुई। बिक्री भी घट गई। तब कंपनी ने अपने विज्ञापनों में अमिताभ बच्चन को लिया। अमिताभ बच्चन के कैडबरी चौकलेट के विज्ञापन इतने मशहूर हुए कि लोग कंपनी के विवाद को भूल गए और बिक्री पहले की तरह सामान्य हो गई। ऐसे ही टूथपेस्ट बनाने वाली एक नामी कंपनी की बिक्री उतनी नहीं थी जितनी कंपनी को उम्मीद थी। बिक्री बढ़ाने के लिए रिसर्च के बाद किसी ने यह सुझाया कि टूथपेस्ट की पैकेजिंग थोड़ी बदल दी जाए और ट्यूब में जहां से पेस्ट निकलता है उस का मुंह बड़ा कर दिया जाए, इस से उत्पाद का इस्तेमाल बढ़ गया और बिक्री भी बढ़ गई।

विज्ञापनों में सर्जनात्मकता

कुछ कंपनियां अपने बेहतरीन विज्ञापनों के लिए हमेशा प्रसिद्ध रहती हैं। अपनी अपनी तरह से एक ढर्रे को पकड़ कर चलने वाली कंपनियां भी हैं। कैडबरी हर बार एक नए आइडिया के साथ आती है। उन्होंने आज पहली तारीख है, जी, पहली तारीख हैके करीब 2 विज्ञापन बनाए और दोनों ही पहली या 30 तारीख के आसपास खूब प्रसारित होते हैं। इसी तरह भारतीय पारंपरिक मिठाइयों की जगह लेने की कोशिश उन के नए विज्ञापन शुभ आरंभमें खूब नज़ाकत के साथ की गई है। बसस्टैंड पर खड़ा लड़का लड़की से थोड़ी सी चौकलेट मांगता है, क्योंकि मां कहती है कोई शुभ काम करने से पहले मुंह मीठा कर लेना चाहिए, खासी नज़ाकत के साथ बना यह विज्ञापन विनिल मैथ्यू ने बनाया है, जिन्हें आज के समय में विज्ञापनों का सब से बेहतरीन निर्देशक माना जा रहा है।

डाबर, वीको जैसे कुछ ब्रांड हैं, जो खासे देशीपन के साथ अपने विज्ञापन पेश करते हैं। इन के विज्ञापन बिना किसी लाग लपेट के सीधे सपाट हैं। हालांकि डाबर ने अपने विज्ञापनों के लिए जब अमिताभ बच्चन को साइन किया, तब भी  कंपनी को काफ़ी फ़ायदा हासिल हुआ।

ज्यादातर कंपनियां फिल्मी सितारों को अपने विज्ञापनों में तब लेने की सोचती हैं, जब उन्हें तुरंत उपभोक्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचना हो। पाफिल्म के निर्देशक और लो लिंटास नामक एजेंसी के क्रिएटिव चीफ़ बाल्कि हैं, जिन्होंने टाटा चाय‘, ‘सर्फ एक्सेलऔर फ़ेयर ऐंड लवलीजैसे ब्रांड्स के विज्ञापन सोचे। एक सामान्य से उत्पाद का ऐसा विज्ञापन, जो उपभोक्ताओं को उत्पाद के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दे।

बाल्कि के मुताबिक, ‘‘कोई भी कंपनी, जो अपना विज्ञापन बनाती है, उस का उद्देश्य है – उस उत्पाद की बिक्री। लेकिन कंपनी के उस उत्पाद की खासियत क्या है? दूसरे उत्पादों से वह कैसे अलग है? कंपनी का मुख्य आइडिया क्या है? इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम विज्ञापन की कहानी सोचते हैं। कंपनियां हमारे पास अपनी मार्केटिंग समस्याएं ले कर आती हैं और हम उन्हें विज्ञापन की स्ट्रैटेजी सुझाते हैं।

लुभावने विज्ञापन

हाल के बेहतरीन मार्केटिंग स्ट्रैटेजी वाले विज्ञापनों में वाडाफोन का विज्ञापन एक बड़ा अच्छा उदाहरण है। कंपनी उपभोक्ताओं को यह बताना चाहती थी कि हम हमेशा आपके साथ हैं। हमारा नैटवर्क हर जगह मिलेगा। एक छोटे बच्चे के साथ कुत्ते की वफादारी ने लोगों का दिल जीत लिया। इस विज्ञापन ने उपभोक्ताओं का कंपनी पर भरोसा जमा दिया। आइडिया का वाक ऐंड टाकभी इन में से एक है। आइडिया के ज्यादातर विज्ञापन बनाने वाले क्रोम पिक्चर्स के डाइरैक्टर अमित शर्मा कहते हैं – “ एक निर्देशक के लिए सब से जरूरी होता है स्टोरी को अच्छी तरह से कह पाना। हर आदमी की पहचान उसका नाम न हो कर एक नंबर है। आइडिया के हमारे इस विज्ञापन से लखनऊ में एक व्यक्ति इतना प्रभावित हुआ कि हमें खबर मिली उन्होंने शादी के कार्ड पर नवयुगल का नाम लिखने के बजाय सिर्फ उन के नंबर दिए थे।

विज्ञापनों  का बाजार पूरी तरह से कंपीटिशन का बाजार है। कुछ महीनों पहले होली के पास रिन और टाइड  का कंपीटिशन खुल्लमखुल्ला दर्शकों  ने देखा। जब रिन यानी हिंदुस्तान लीवर ने अपने विज्ञापन में सीधे तौर पर कहा कि रिन की धुलाई, टाइड से ज्यादा चमकदार है। हालांकि यह गैरकानूनी था। 3-4 दिन बाद इस विज्ञापन पर रोक लगा दी गई। लेकिन तब तक दर्शक मजा ले चुके थे।

कैडबरी, ईनो, डोकोमो जैसी ऐड फिल्मों के डाइरैक्टर पीयूष रागनी के मुताबिक, ‘‘विज्ञापन का काम है ग्राहक के मन में उत्पाद की जरूरत पैदा करना। दरअसल, कंपनी मार्केट में अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए कई तरह के दावों  का सहारा लेती है। एजेंसी सोचती है, उन दावों को पेश करने के तरीके, जिन से वे बिलकुल सच लगें और लोगों का भरोसा जीत सकें – इसके लिए निर्देशक अपनी विज्ञापन बनाने की कला पेश करता है।

रेस में फिल्मी सितारे आगे

एक बड़ा उदाहरण लक्स का विज्ञापन है। लक्स साबुन मात्र 15-18 रूपए की कीमत का है। लेकिन इस के विज्ञापन में हमेशा ही बड़ी फ़िल्म अभिनेत्रियां ली गई हैं। ऐड एजेंसी में ही काम करने वाले एक सूत्र ने नाम न बताने का हवाला देते हुए कहा, ‘‘आज के दौर में बौलीवुड  अभिनेत्रियां करीब  1-2 करोड़ रुपए तक लेती हैं, जबकि विज्ञापन जगत में अभिनेताओं का ज्यादा दबदबा है। अभिनेता करीब 6-7 करोड़ चार्ज करते हैं। कीमत उन की मार्केट डिमांड पर निर्भर करती है। दरअसल कंपनियों का फ़िल्मी सितारों के साथ साल में करीब 3 या 4 दिन का कांटैक्ट होता है। इन दिनों कंपनियां चाहे उन से विज्ञापन की शूटिंग करा लें, उन्हें मीटिंग्स के लिए बुला लें या किसी और तरह से अपने ब्रांड की पब्लिसिटी करा लें।

लक्स का नया विज्ञापन, जिस में अभिषेक, ऐश्वर्या को पकड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ऐश की मुलायम त्वचा इतनी मुलायम है कि अभिषेक के हाथ में ही नहीं आ रही। पहली बार किसी विज्ञापन में ऐश-अभि साथ साथ नज़र आ रहे थे। माना जा रहा है कि गोल्डन कपल का यह पैकेज कंपनी को करीब साढ़े 7 करोड़ रुपए का पड़ा। लेकिन यह बजट भी काफी विवादित रहा। कई वैबसाइट्स के मुताबिक असलियत में इस जोड़े ने करीब 25 करोड़ रुपए लिए हैं। विज्ञापन बनाने का खर्च अलग है। यह विज्ञापन विदेशी डाइरैक्टर स्टीफ़न ने डाइरैक्ट किया। म्यूजिक कंपोज किया शंकर एहसान लाय ने।

हालांकि ऐसे बहुत से विज्ञापन और उदाहरण हैं, जिन्हें बिना किसी फ़िल्मी सितारे के सफलता मिली। अपने आप में मील का पत्थर साबित हुए विज्ञापनों में, ‘सर्फ़ की खरीदारी में ही समझदारी‘, ‘बजाज हमारा बजाज‘, ‘चल मेरी लूना‘, ‘निरमा वाशिंग पाउडर निरमावगैरह ऐसे ही विज्ञापन हैं।

चैनलों के भी वारे न्यारे

कुल मिला कर कहा जा सकता है कि विज्ञापन की दुनिया में पैसा बहुत है और सभी अच्छा कमा रहे हैं। एक विज्ञापन बनाने का बजट करीब 5 लाख से 50 लाख रुपए तक भी हो सकता है। इन विज्ञापनों को चैनल पर प्रसारित करने का खर्च तो कंपनियों को और भी भारी पड़ता है। स्टारन्यूज़ या ऐसे ही कुछ अन्य चैनलों पर सिर्फ़  एक बार 30 सैकेंड का विज्ञापन देने के लिए कंपनी को करीब 21-22 हजार रुपए का खर्च आता है। चैनल किसी विज्ञापन को 5 बजे से 11 बजे रात तक भी चला सकता है। लेकिन अगर कंपनी किसी खास वक्त पर ही विज्ञापन प्रसारित कराना चाहे तो खर्च और भी बढ़ जाएगा। अगर सिर्फ़ 7 दिन भी विज्ञापन प्रसारित हो तो कंपनी को करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं। अगर ऐंटरटेनमैंट चैनलों की बात करें तो मात्र 10-15 सैकेंड की कीमत 50 हज़ार रुपए से ले कर 2-3 लाख रूपए तक जा सकती है। टेलीविजन के हिट शोज़ के बीच में विज्ञापन देने का खर्च 11-12 लाख रुपए तक भी जा सकता है।                                 

(साभार)

 गृहशोभा , अक्तूबर ; (प्रथम) 2010 अंक में प्रकाशित

सुश्री सुजाता शुक्ल के मूल लेख पर आधारित

उपयोगी शब्दार्थ

( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)     

विज्ञापन m

इज़ाफ़ा  m

निष्कर्ष  m

एड़ीचोटी का जोर लगाना

बदनामी f

विवाद m

ढर्रा m

प्रसारित करना

पारंपरिक

नजाकत f

लाग लपेट f

सपाट

खासियत f

लुभावना

प्रभावित

खुल्लमखुल्ला

दर्शक m/f

दरअसल

दावा m

अभिनेत्री f

सूत्र m

हवाला m

अभिनेता m

दबदबा m

विवादित

मील का पत्थर m

वारे न्यारे

कुल मिला कर

advertisement, commercial

increase

conclusion

to do one’s best

infamy, bad name

dispute

structure, style

to transmit, broadcast, telecast

traditional

delicate behavior

showiness, ostentation

flat

speciality

attractive

influenced

openly

viewer, spectator

in fact

claim

actress

source, formula

reference (of someone)

actor

dominance

disputed

milestone

excellent advantage/profit

in all

Linguistic and Cultural Notes

1. Rules of punctuation in Hindi are not yet standardized yet. Commas and hyphens in particular depend on the individual writer. Commas often appear where we see a pause in speech. See a few examples from this unit –

जहां अखबारों में विज्ञापनों पर खर्च करीब 30% प्रतिशत  बढ़ा, वहीं टेलीविजन इंडस्ट्री में 26% का इजाफ़ा हुआ, जो एशिया पैसेफिक की 12 मार्केट्स में सब से ज्यादा है।

अक्सर ऐसे कारणों से जब कोई कंपनी विज्ञापन लांच करती है, तो उस से पहले मार्केट सर्वे या रिसर्च भी कराती है।

भारत में वे विज्ञापन ज्यादा पसंद किए जाते हैं, जिन्हें लोग अपने परिवार के साथ बैठ कर देख सकें।

In all these three examples, use of the comma in the middle of the sentences is avoidable according to a brief survey.

2. Ads and commercials in India are known for their creativity. Ads are found in magazines, newspapers, billboards, and also on public walls. The huge diversity in popular culture is reflected in these ads and commercials. Printed ads mix both languages and writing systems, while commercials use humor and cultural sentiments. Ads for rural areas are different from ads trying to capture the imagination of city folks. Family oriented ads generally have been popular across all regions in India.

Language Development

The two following vocabulary categories are designed for you to enlarge and strengthen your vocabulary.  Extensive vocabulary knowledge sharpens all three modes of communication, With the help of dictionaries, the internet and other resources to which you have access, explore the meanings and contextual uses of as many words as you can in order to understand their many connotations.

Semantically Related Words

Here are words with similar meanings but not often with the same connotation.

विज्ञापन

इज़ाफ़ा

बदनामी

निष्कर्ष

विवाद

खासियत

लुभावना

दरअसल

दबदबा

इश्तहार

वृद्धि

अपयश

नतीजा

झगड़ा

विशेषता

आकर्षक

असल में, वास्तव में

प्रभुत्व

Structurally Related Words (Derivatives)

परंपरा, पारंपरिक, परंपरागत

प्रभाव, प्रभावित, प्रभावी

विवाद, विवादित, विवादग्रस्त, वादविवाद, निर्विवाद

असल, असलियत

Comprehension Questions

1. What kind of ads/commercials Indian consumers like?

a. those that suggest the least wastage

b. those that include glamorous people

c. those that a family can watch together

d. those that are supported by research

2. Based on the text, which is the most expensive factor in advertising?

a. charges of advertising agencies

b. charges by actors/actresses

c. charges paid to the media

d. charges incurred for production