b. Employer-Employee Relationships
Module 5.2
व्यावसायिक संस्कृति Business Culture
|
नियोक्ता-श्रमिक संबंध Employer-Labor Relations |
Text Level
Advanced |
Modes
Interactive Interpretive
|
What will students know and be able to do at the end of this lesson?
Participating in a radio or TV conversation and verbalizing local labor issues |
Text
(आकाशवाणी के साप्ताहिक कार्यक्रम ‘उद्योग जगत से‘ की रिकॉर्डिंग हो रही है। वार्ता का विषय है “ वैश्वीकरण के दौर में नियोक्ता–मज़दूर संबंध “ । वार्ता में ऐंकर धीरज पचौरी के अलावा नियोक्ताओं की ओर से श्री पारितोष लधानी जोकि कोकाकोला की एक फ्रेंचाइज़ के डॉयरेक्टर हैं, उपस्थित हैं। श्रमिक जगत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं एटक के ज़िला महामंत्री श्री जगदीश प्रसाद)
धीरज पचौरी – नमस्कार श्रोताओ! उद्योग जगत में आज की वार्ता का विषय है “ वैश्वीकरण के दौर में नियोक्ता–मज़दूर संबंध“। वार्ता में भाग ले रहे हैं श्री पारितोष लधानी , जोकि एक शीतल पेय बनानेवाली कंपनी के निदेशक हैं और यहां नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। श्री जगदीश प्रसाद जोकि एक श्रमिक संगठन से संबद्ध हैं, श्रमिकों के हितों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। आप दोनों का इस कार्यक्रम में स्वागत है। दोनों –नमस्कार ! धीरज पचौरी – मेरा पहला प्रश्न है श्री जगदीश प्रसाद जी से। सर ! बताएँ कि क्या वैश्वीकरण ने नियोक्ता–श्रमिक संबधों को पुनः परिभाषित किया है या फिर श्रमिकों की स्थिति यथावत् ही है। जगदीश प्रसाद – धीरज जी ! मुझे नहीं लगता है कि वैश्वीकरण से मज़दूरों की स्थिति में कोई सुधार हुआ है। वैश्वीकरण के पश्चात् जो उद्योग–धंधे शुरू हुए हैं उनमें अधिकतर आई.टी व जन-संचार क्षेत्र से संबंधित हैं और इनमें काम करनेवाले अधिकतर व्हाइट कॉलरवाले व्यक्ति हैं न कि ब्लू कॉलरवाले श्रमिक। व्हाइट कॉलरवालों को अपने नियोक्ताओं से न तो पहले कोई विशेष शिकायत थी न आज है और न भविष्य में रहेगी। वे तो शिकायत करने के बजाए अपना नियोक्ता ही बदल लेते हैं। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। धीरज पचौरी – पारितोष जी ! आप जगदीश जी की इस टिप्पणी से कहाँ तक सहमत हैं? पारितोष लधानी- श्रोताओं को एक बार पुनः मेरा यानी पारितोष लधानी का नमस्कार ! मैं श्री जगदीश प्रसाद जी के विचारों से पूरी तरह असहमत हूँ। वैश्वीकरण के पश्चात हमारा निर्यात बढ़ा है। उद्योगों की वार्षिक दर 8% के आसपास रही है और सेवापरक उद्योगों के साथ-साथ निर्माणपरक उद्योगों का भी इस वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अगर ये सब आँकड़े सही हैं तो देश में तथाकथित ब्लू कॉलरवाले श्रमिकों का भी उद्योगों और निर्यात बढ़ाने में उतना ही योगदान है जितना कि व्हाइट कॉलरवालों का। श्री जगदीश प्रसाद जी सारे परिदृश्य का बड़ी ही संकुचित दृष्टि से आकलन कर रहे हैं। आज प्रत्येक निर्यातक इकाई चाहे वो सेवा का निर्यात कर रही हो या फिर किसी वस्तु का, बिना स्वतंत्र थर्ड पार्टी ऑडिट के अपना निर्यात नहीं कर सकती। ऐसे में इन इकाइयों में काम करनेवाले मज़दूरों को सारे वैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। धीरज पचौरी –क्या आप कुछ कहना चाहेंगे जगदीश प्रसाद जी? जगदीश प्रसाद – पारितोष जी का यह आकलन भी निरे हवाई-किले बनाने से कम नहीं है। अगर एक बार इनकी बातों को सच भी मान लिया जाए तो उन उद्योगों का क्या जो बाज़ार के लिए सेवा व वस्तुओं का निर्माण कर रहे हैं। उनमें तो श्रमिकों की स्थिति यथावत् है। धीरज पचौरी – लीजिए, पारितोष जी ! अब आपके आकलन की बारी है। पारितोष लधानी – देखिए धीरज जी ! जगदीश प्रसाद जी ने कम से कम मेरी एक बात का समर्थन तो कर ही दिया है। जहाँ तक घरेलू बाज़ार की माँग-पूर्ति —- जगदीश प्रसाद– पारितोष जी ! रुकिए ! रुकिए ! मैंने अभी आपकी बात मानी नहीं। सिर्फ़ एक परिदृश्य की कल्पना की है आपसे एक सवाल करने के लिए। पारितोष लधानी- देखिए, जगदीश प्रसाद जी ! मैंने निर्यातपरक उद्योगों में मज़दूरों की स्थिति के बारे में जो कहा उससे आप कहाँ तक सहमत हैं? जगदीश प्रसाद – सिर्फ आंशिक रूप से। देखिए निर्यात में भी सेवापरक उद्योगों की स्थिति दूसरी है और उत्पादक इकाइयों की इतर है। हाँ, निर्यातक इकाइयों में घरेलू इकाइयों की तुलना में श्रमिक ज़्यादा संतुष्ट हैं। यह बात तो मैं भी मानता हूँ। पारितोष लधानी – चलिए , कोई तो बात मानी आपने ! धीरज जी आज संचार-क्रांति का युग है अतः श्रमिकों को अपने अधिकारों के बारे में पहले से बहुत अधिक चेतना है। ऐसे में शोषण आदि बीते युग की बातें हैं। जगदीश प्रसाद – पारितोष जी ! आप स्थिति को जितनी सुखद समझ रहे हैं उतनी है नहीं। पारितोष लधानी – जगदीश प्रसाद जी ! एक बात बताइए, आपका अनुभव तो मेरी उम्र से दुगुने से भी ज़्यादा है। क्या आपको नहीं लगता कि आजकल हड़ताल, तालाबंदी की खबरें उतनी सुनने में नहीं आतीं जितनी शायद 10-15 साल पहले आम थीं। जगदीश प्रसाद – बेटा ! बात यह है कि आज मँहगाई इतनी बढ़ गई है कि मज़दूर एक दिन की हड़ताल में ही टूट जाता है ऐसे में लंबे आंदोलनों का सवाल ही नहीं उठता। धीरज पचौरी – वाह ! मँहगाई से होनेवाली परेशानियों के बारे में तो सुना था लेकिन उससे उद्योगों को लाभ हो रहा है – ऐसा पहली बार सुन रहा हूँ। (तीनों मुस्करा देते हैं ) तो श्रोताओ! अभी तक आपने दोनों पक्षों के विचार सुने लेकिन यह एक ऐसा विषय नहीं है जिसमें एक राय बन सके। आप दोनों हमारे कार्यक्रम में आए इसके लिए हम आपके आभारी हैं। दोनों – धन्यवाद ! नमस्कार ! धीरज पचौरी – तो आज के लिए इतना ही। फिर मिलते हैं अगले सप्ताह आज ही के दिन, इसी समय। नमस्कार! |
Glossary
( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)
वार्ता f | बातचीत f, talk |
नियोक्ता m | employer |
श्रमिक m | मज़दूर m/f, laborer |
प्रतिनिधित्व m | representation |
वैश्वीकरण m | globalization |
दौर m | period |
हित m | benefit, good, interest |
परिभाषित करना | to define |
यथावत् | as it was |
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी (idiom) | no cause no consequence |
टिप्पणी f | comment |
सहमत | in agreement, consentient |
आँकड़े m | statistics |
परिदृश्य m | scenario |
वैधानिक अधिकार m | constitutional right(s) |
हवाई–किले बनाना | to build castles in the air |
आकलन m | evaluation, estimate |
संचार-क्रांति f | communication – revolution |
तालाबंदी f | lock-out |
आभारी | grateful |
Structural Review
1. | प्रतिनिधित्व | प्रतिनिधि, प्रतिनिधित्व, प्रतिनिधिमंडल are some additional words generated with the base word प्रतिनिधि |
2. | संबद्ध | Similarly, संबंध, संबद्ध, संबंधित |
3. | सुखद | Here the final letter द means देने वाला. One can also generate many more monosyllabic words with this suffix. Examples – दुःखद, जलद, धनद, मानद, बलद. etc. Such words are not used in the spoken language but are found more in poetry and other literary texts. |
4. | Formal Hindi – Informal Hindi
|
Many formal words are not often used in informal contexts but the reverse is not true. In other words, informal words can be used in formal contexts. The gap between formal and informal is much more distinct in Hindi than in English. |
5. | श्रोताओ
|
This is in vocative plural form. This form is spelled correctly but the final syllable is often nasalized both in spoken and written Hindi, especially on the internet. Thus many people write such a vocative form as श्रोताओं. Other vocative plural forms like दोस्तो, मित्रो, भाइयो are also being written and spoken with nasalization. Maybe this is a linguistic change in progress. |
Cultural Notes
1. | बेटा !
|
Use of such terms is not common in formal contexts but it seems that one cannot completely rule it out. It depends on how comfortable the two interlocutors feel with each other. In this unit, when one invokes the other’s extensive experience on the basis of age, it allows the second person to take the opportunity to address the former in personal terms as बेटा. This maybe a way of accepting the compliment of having much greater experience. |
Practice Activities (all responses should be in Hindi)
1. | What are your views about organized labor in India? How has far the situation changed over years? |
2. | A role-play between three participants – one assumes the role of an anchor, the second represents employers’ viewpoint and the third represents workers’ viewpoint. The topic of discussion is the necessity of having a respectable benefit package for all workers.
|
3. | आज हड़ताल, तालाबंदी की खबरें उतनी सुनने में नहीं आतीं जितनी शायद 10-15 साल पहले आम थीं
To what extent do you agree with the above statement in the context of India and the United States? |
4. | न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी
Write one short text using the above idiom. |
5. | Review the following related words and construct a sentence for each.
नियुक्त, नियुक्ति, नियोक्ता श्रम, श्रमिक, परिश्रम |
Comprehension Questions
1.With how many issues were the presenters in agreement?
a. o
b. 1
c. 2
d. 3
2.Who was aggressive in presenting his argument?
a. Jagdish Prasad
b. Paritish Ladhani
c. Both of them
d. Neither of them