c. Child Labor issues
Module 5.3
व्यावसायिक संस्कृति Business Culture
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एक सफल व्यवसायी का टी.वी. पर साक्षात्कार TV Interview of a Successful Business Person
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Text Level
Advanced |
Modes
Interactive Interpretive
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What will students know and be able to do at the end of this lesson?
Having a TV interview to project your and your company’s persona before the public |
Text
(डॉ. रंजना बंसल टाटा मोटर्स के अधिकृत विक्रेता अशोक ऑटो सेल्स लिमिटेड की मैंनेजिंग डॉयरेक्टर हैं। स्थानीय टीवी चैनल डीज़ी न्यूज़ के कार्यक्रम ‘सफल व्यक्तित्व‘ में उनका इंटरव्यू रिकॉर्ड किया जा रहा है। प्रोग्राम की ऐंकर सुश्री कविता शर्मा से उनकी वार्ता का सारांश प्रस्तुत है)
कविता शर्मा- प्यारे दर्शको! आप सभी को आपकी अपनी कविता शर्मा का प्यार भरा नमस्कार ! आज के हमारे कार्यक्रम “सफल व्यक्तित्व” के इस एपिसोड की मेहमान हैं शहर की जानी मानी हस्ती, सफल या यूँ कहिए सफलतम व्यवसायी, जोकि पेशे से मूलतः एक डॉक्टर भी हैं, डॉ. रंजना बंसल। रंजना बंसल – नमस्कार, कविता जी ! नमस्कार प्यारे दर्शको ! कविता शर्मा- डॉ. रजना जी ! जैसाकि अधिकांश श्रोता जानते हैं कि आपके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। आप अपने समय की एक सफल डॉक्टर हैं और आज एक सफल व्यवसाय की कर्ता-धर्ता। कौनसा रूप आपके व्यक्तित्व का सही आइना है? रंजना बंसल- देखिए कविताजी ! जैसेकि आप जानती हैं कि जब तक मेरे भाई अशोक बंसल ज़िंदा थे तब तक मैं सिर्फ़ एक डॉक्टर ही थी। बचपन से मैंने डॉक्टर बनने का सपना देखा था और जब मेरा चयन डॉक्टर की पढ़ाई के लिए हुआ तब से ही मैं इस चिकित्सा के पेशे से ही जन-सामान्य की सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य मानती थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद भी मैं इसी लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर अग्रसर थी। तभी अचानक मेरे भाई भाभी की कार-दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु ने मेरे जीवन के चिंतन व दिशा दोनों को बदल दिया। भाई के छोटे छोटे बच्चों का लालन-पालन व परिवार के जमे जमाए व्यवसाय को चलाए रखने की ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई थी और ऐसी विषम परिस्थितियों में मुझे अपने लक्ष्य को छोड़कर जीवन में एक बिल्कुल नए क्षेत्र में उतरना पड़ा। लेकिन भाई के आशीर्वाद से नामुमकिन सा लगनेवाला कार्य भी मैंने सहजता से निभा लिया और आगे भी निभाती रहूँगी ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। कविता शर्मा – क्यों नहीं ! बेशक ! पर डॉ.बंसल डॉक्टरी के पेशे में मानवीय मूल्यों का बड़ा महत्व है लेकिन व्यवसाय को सफल बनाने में वे मूल्य निरर्थक से हो जाते हैं। ऐसे में आपने अपने मानवीय मूल्यों के साथ-साथ व्यावसायिक जगत के गला-काट मूल्यों के साथ कैसे तालमेल बिठाया? रंजना बंसल – बहुत अच्छा प्रश्न किया आपने कविता जी ! मेरी डॉक्टरी शिक्षा तो सिर्फ़ मेरे भतीजों के लालन-पालन में काम आई। मैंने व्यवसाय में उन मूल्यों को कभी अपनी कमज़ोरी बनने नहीं दिया। कविता जी, वैसे भी व्यावसायिक जगत में बड़ी गला-काट प्रतिस्पर्धा है। एक छोटी सी गलती आपको बिज़नेस से बाहर कर सकती है। और तो और एक महिला के लिए तो यह क्षेत्र बिल्कुल जंग के मैदान की तरह है। व्यवसायी वैसे भी किसी अन्य को अपने से आगे निकलता नहीं देख सकते और अगर वह महिला है तो समझिए कि उसकी निजी ज़िंदगी व निजता पर ही प्रहार किया जाता हो। ऐसे में कोई कमज़ोर महिला टिक कर काम नहीं कर सकती। यह अहसास मुझे पहले दिन से ही था इसीलिए मैंने शुरू से ही बड़ा आक्रामक रुख अख्तियार किया। जिसका मुझे फ़ायदा भी हुआ पर कभी कभी नुकसान भी। क.शर्मा – वह कैसे ? रंजना बंसल – वह ऐसे कि आधे से ज़्यादा आलोचक तो डर के मारे मैदान छोड़ गए। बाकियों को मैंने समय के साथ ठीक कर दिया। आज मेरे भाई का कार का व्यवसाय कई गुना बढ़ गया है। आज मेरे कई शहरों में फैले व्यवसाय में भतीजों ने भी पढ़ाई पूरी करके मेरा हाथ बँटाना शुरू कर दिया है। यूँ कहा जा सकता है कि मैं अब अपने काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ। कविता शर्मा – डॉ.बंसल ! आपकी जीवन यात्रा तो त्याग और तपस्या का अनूठा संगम है। रंजना बंसल – मैं तो कहूँगी कि श्रम और सेवा का संगम है। कोई अपनों के लिए जो कुछ करता है उसे मैं त्याग नहीं मानती। मैंने कभी कुछ भी किसी के दबाव में आकर नहीं किया। जो भी किया पूरी निष्ठा से किया, मन से किया। कविता शर्मा – एक अंतिम प्रश्न डॉ. बंसल ! दस साल बाद आप अपने को कहाँ पाती हैं? रंजना बंसल – अपना प्रयत्न तो प्रगति की दिशा में ही है। बच्चे भी पढ़ लिख कर नए नए विचार ले कर आ रहे हैं। मुझे तो नए नए शिखर दिखाई दे रहे हैं। बाकी तो समय बताएगा। (दोनों हँस पड़ते हैं) कविता शर्मा – तो दर्शको ! यह थीं डॉ. रंजना बंसल ! एक सफल व्यवसायी व एक सफल महिला जिसने परिवार के व्यवसाय को संकट से निकाला और बुलंदियों पर पहुँचाया। डॉ.बंसल, आपने अपना अमूल्य समय हमें दिया इसके लिए हम आपके आभारी हैं। आप और अधिक बुलंदियों को छूएँ ऐसी हमारी हार्दिक इच्छा है। रंजना बंसल – धन्यवाद, कविताजी ! मुझे आपके टीवी शो में आकर बहुत अच्छा लगा। नमस्कार, कविता जी ! प्यारे दर्शको, आपको भी मेरा नमस्कार ! कविता शर्मा – धन्यवाद ! अगले एपिसोड में हम फिर से उपस्थित होंगे शहर के किसी सफल व्यक्तित्व को लेकर। तब तक के लिए नमस्कार ! अलविदा ! शब्बा ख़ैर ! |
Glossary
( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)
अधिकृत विक्रेता m | authorized dealer |
सुश्री | Ms. |
व्यक्तित्व m | शख़्सियत f, personality |
सारांश m | सार m, summary |
जानीमानी हस्ती f | मशहूर, प्रसिद्ध, well-known personality |
श्रोता m | audience |
आयाम m | dimension |
चयन m | चुनाव m, selection |
जमा-जमाया | well-established |
विषम परिस्थितियां f | difficult circumstances |
सहजता से | effortlessly |
तालमेल m | coordination |
प्रतिस्पर्धा f | मुकाबला m, प्रतिद्वंद्विता f, competition |
निजता f | privacy |
आक्रामक रुख m | आक्रामक रवैया m, aggressive attitude |
अनूठा संगम m | distinctive convergence |
अलविदा | good-bye! |
शब्बा ख़ैर | good night! |
Structural Review
1. | व्यवसायी ….. अपने से आगे निकलता नहीं देख सकते | In negative sentences in the present tense, the tense marker है or हैं becomes optional. The speaker Dr. Ranjna Bansal could have said – व्यवसायी ….. अपने से आगे निकलता नहीं देख सकते हैं। |
2. | मैंने कभी कुछ भी किसी के दबाव में आकर नहीं किया | The two elements in the adverbial expression आकर can also be written separately. The structure of this form is verb stem + कर. The other two variants used in colloquial speech are के or करके. So colloquially one could say आके or आ करके.
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3. | Hyphenated words | There is no standardized usage for hyphenated words. We see over-use, under-use and little use of hyphens. Writers have individual ways of dealing with the use of hyphens. |
Cultural Notes
1. | Reflection of composite culture
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The use of words from Urdu and English in Hindi mirrors the composite culture of Indian society. The text in this unit is predominantly in formal Hindi but the use of some Urdu words आइना, नामुमकिन, अख्तियार करना, बुलंदियां, अलविदा, शब्बा ख़ैर serves a sociolinguistic purpose. It draws an audience from different backgrounds. Hindi words could have been used instead – दर्पण, असंभव, स्वीकार करना, ऊंचे शिखर, नमस्ते, शुभ रात्रि. Something similar can be said about the use of English words used in this unit. |
Practice Activities (all responses should be in Hindi)
1. | Role-play the above dialogue in your own words and with your own story – real or imagined. |
2. | To what extent are professional skills transferrable from one profession to the other? |
3. | What are some new ideas that the younger generation is eager to introduce? Where do you find conflict between the new and old ideas? |
4. | We see some collocations like the following: जानी मानी हस्ती, कर्ता-धर्ता, जन-सामान्य, आकस्मिक मृत्यु, लालन-पालन, जमे जमाए, दृढ़ विश्वास, आक्रामक रुख, जीवन यात्रा, अमूल्य समय
Think of ten more such collocations used anywhere in Hindi. |
5. | What is the vocative plural form of the following?
मित्र, दोस्त, छात्र, साथी, बच्चा, लड़का, लड़की, सहयोगी, खिलाड़ी, कार्यकर्ता |
Comprehension Questions
1.What is Dr. Ranjana Bansal’s current status?
a. After her brother and his wife died, she is assisting their sons in the business.
b. She is a practicing doctor but is also helping her nephew in the business.
c. She left her medical practice and is solely running her brother’s business.
d. She is ready to retire after entrusting her brother’s businee to her nephews.
3. Dr. Bansal’s dedication is foremost in
a. medical practice
b. Ashok auto sales
c. family matters
d. money