Ads Market Move to Rural India
Module 5.4
विज्ञापन उद्योग – 4
विज्ञापन बाज़ार अब चला गांव की ओर
भारतीय बाज़ार एक नई करवट ले रहा है। उसका विस्तार चौंकाने वाला है और समृद्धि चौंधियानेवाली। पिछले दस सालों में भारतीय बाज़ार का विस्तारवाद कई तरह से निंदा और आलोचना के केंद्र में भी है। बावजूद इसके यह बढ़ता जा रहा है और रोज नई संभावनाओं के साथ और विस्तार ले रहा है। बाज़ार की भाषा, उसके मुहावरे, उसकी शैली और शिल्प सब कुछ बदल गए हैं। यह भाषा आज की पीढ़ी समझती है और काफी कुछ उस पर चलने की कोशिश भी करती है। विज्ञापन बाजार के नियंता अब इसलिए ग्रामीण भारत की ओर चल पड़े हैं।
भारतीय बाज़ार इतने संगठित रूप में और इतने सुगठित तरीके से कभी दिलोदिमाग पर नहीं छाया था, लेकिन उसकी छाया आज इतनी लंबी हो गई है कि उसके बिना कुछ संभव नहीं दिखता। भारतीय बाज़ार अब सिर्फ़ शहरों और कस्बों तक केंद्रित नहीं रहे। वे अब गाँव में नई संभावनाएं तलाश रहे हैं। भारत गाँव में बसता है, इस सच्चाई को हमने भले ही न स्वीकारा हो, लेकिन भारतीय बाज़ार को कब्जे में लेने के लिए मैदान में उतरे प्रबंधक इसी मंत्र पर काम कर रहे हैं। शहरी बाज़ार अपनी हदें पा चुका है। वह संभावनाओं का एक विस्तृत आकाश प्राप्त कर चुका है, जबकि ग्रामीण बाज़ार एक नई और जीवंत उपभोक्ता शक्ति के साथ खड़े दिखते हैं। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा, अपनी बढ़त को कायम रखने के लिए मैनेजमेंट गुरुओं और कंपनियों के पास इस गाँव में झाँकने के अलावा और विकल्प नहीं है।
एक अरब आबादी का यह देश जिसके 73 फ़ीसदी लोग आज भी हिंदुस्तान के पांच लाख, 72 हजार गाँवों में रहते हैं, अभी भी हमारा बाज़ार प्रबंधकों की जकड़ से बचा हुआ है। पर जाहिर है निशाना यहीं पर है। तेज़ी से बदलती दुनिया, विज्ञापनों की शब्दावली, जीवन में कई ऐसी चीज़ों की बनती हुई जगह, जो कभी बहुत गैरज़रूरी थी शायद इसीलिए प्रायोजित की जा रही है। भारतीय जनमानस में फैले लोकप्रिय प्रतीकों, मिथकों को लेकर नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। ये प्रयोग विज्ञापन और मनोरंजन दोनों दुनियाओं में देखे जा रहे हैं। भारत का ग्रामीण बाज़ार अपने आप में दुनिया को विस्मित कर देने वाला है। परंपरा से संग्रही रही महिलाएं, मोटा खाने और मोटा पहनने की सादगी भरी आदतों से जकड़े पुरुष आज भी इन्हीं क्षेत्रों में दिखते हैं। शायद इसी के चलते जोर उस नई पीढ़ी पर है, जिसने अभी-अभी शहरी बनने के सपने देखे हैं। भले ही गाँव में उसकी कितनी भी गहरी जड़ें क्यों न हों। गाँव को शहर जैसा बना देना, गाँव के घरों में भी उन्हीं सुविधाओं का पहुँच जाना, जिससे जीवन सहज भले न हो, वैभवशाली ज़रूर दिखता हो। यह मंत्र नई पीढ़ी के गले उतारे जा रहे हैं। आज़ादी के छह दशकों में जिन गाँवों तक हम पीने का पानी तक नहीं पहुँचा पाए, वहाँ कोला और पेप्सी की बोतलें हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को मुँह चिढ़ाती दिखती हैं।
गाँव में हो रहे आयोजन आज लस्सी, मठे और शरबत की जगह इन्हीं बोतलों के सहारे हो रहे हैं। ये बोतलें सिर्फ़ संस्कृति का विस्थापन नहीं हैं, यह सामूहिकता का भी गला घोंटती हैं। गाँव में हो रहे किसी आयोजन में कई घरों और गाँवों से मांगकर आई हुई दही, सब्जी या ऐसी तमाम चीजें अब एक आदेश पर एक नए रूप में उपलब्ध हो जाती हैं। दरी, चादर, चारपाई, बिछौने, गद्दे और कुर्सियों के लिए अब टेंट हाउस हैं। इन चीज़ों की पहुँच ने कहीं न कहीं सामूहिकता की भावना को खंडित किया है। भारतीय बाज़ार की यह ताकत हाल में अपने पूरे विद्रूपता के साथ प्रभावी हुई है। सरकारी तंत्र के पास शायद गाँव की ताकत, उसकी संपन्नता के आंकड़े न हों, लेकिन बाज़ार के नए बाजीगर इन्हीं गाँवों में अपने लिए राह बना रहे हैं। नए विक्रेताओं को ग्रामीण भारत की सच्चाइयाँ जानने की ललक अकारण नहीं है। वे इन्हीं जिज्ञासाओं के माध्यम से भारत के ग्रामीण ख़जाने तक पहुँचना चाहते हैं। उपभोक्ता सामग्री से अटे पड़े शहर, मेगा माल्स और बाज़ार अब यदि ग्रामीण भारत में अपनी जगह तलाश रहे हैं, तो उन्हें उन्हीं मुहावरों का इस्तेमाल करना होगा, जिन्हें भारतीय जनमानस समझता है।
विविधताओं से भरे देश में किसी संदेश का आख़िरी आदमी तक पहुँच जाना साधारण बात नहीं है। कंपनियां अब ऐसी कार्यनीति बना रही हैं, जो उनकी इस चुनौती को हल कर सकें। चुनौती साधारण वैसे भी नहीं है, क्योंकि पांच लाख, 72 हजार गाँव भर नहीं, वहाँ बोली जाने वाली 33 भाषाएं, 1652 बोलियाँ, संस्कृतियाँ, उनकी उप संस्कृतियाँ और इन सबमें रची-बसी स्थानीय भावनाएं इस प्रसंग को बेहद दुरूह बना देती हैं। यह ग्रामीण भारत, एक भारत में कई भारतों के सांस लेने जैसा है। कोई भी विपणन कार्यनीति इस पूरे भारत को एक साथ संबोधित नहीं कर सकती। गाँव में रहने वाले लोग, उनकी ज़रूरतें, खरीद और उपभोग के उनके तरीके बेहद अलग-अलग हैं। शहरी बाज़ार ने जिस तरह के तरीकों से अपना विस्तार किया वे फ़ार्मूले इस बाज़ार पर लागू नहीं किए जा सकते। शहरी बाज़ार की हदें जहाँ खत्म होती हैं, क्या भारतीय ग्रामीण बाज़ार वहीं से शुरू होता है, इसे भी देखना ज़रूरी है। ग्रामीण और शहरी भारत के स्वभाव, संवाद, भाषा और शैली में जमीन आसमान का फ़र्क है। देश के मैनेजमेंट गुरु इन्हीं विविधताओं को लेकर शोधरत हैं। यह रास्ता भारतीय बाज़ार के अश्वमेध जैसा कठिन संकल्प है। जहाँ पग-पग पर चुनौतियाँ और बाधाएं हैं।
भारत के गाँवों में सालों के बाद झाँकने की यह कोशिश भारतीय बाज़ार के विस्तारवाद के बहाने हो रही है। इसके सुफल प्राप्त करने की कोशिशें हमें तेज़ कर देनी चाहिए, क्योंकि किसी भी इलाके में बाज़ार का जाना वहाँ की प्रवृत्तियों में बदलाव लाता है। वहाँ सूचना और संचार की शक्तियां भी सक्रिय होती हैं, क्योंकि इन्हीं के सहारे बाज़ार अपने संदेश लोगों तक पहुँचा सकता है। जाहिर है यह विस्तारवाद सिर्फ़ बाज़ार का नहीं होगा, सूचनाओं का भी होगा, शिक्षा का भी होगा। अपनी बहुत बाज़ारवादी आकांक्षाओं के बावजूद वहाँ काम करने वाला मीडिया कुछ प्रतिशत में ही सही, सामाजिक सरोकारों का ख्याल ज़रूर रखेगा, ऐसे में गाँवों में सरकार, बाज़ार और मीडिया तीन तरह की शक्तियों का समुच्चय होगा, जो यदि जनता में जागरूकता के थोड़े भी प्रश्न जगा सका, तो शायद ग्रामीण भारत का चेहरा बहुत बदला हुआ होगा।
भारत के गाँव और वहाँ रहने वाले किसान बेहद ख़राब स्थितियों के शिकार हैं। उन्हें भूमिहीन बनाने के कई तरह के प्रयास चल रहे हैं। इससे एक अलग तरह का असंतोष भी समाज जीवन में दिखना शुरू हो गया है। भारतीय बाज़ार के नियंता इन परिस्थितियों का विचार कर अगर मानवीय चेहरा लेकर जाते हैं, तो शायद उनकी सफलता की दर कई गुना हो सकती है। फिलहाल तो आने वाले दिन इसी ग्रामीण बाज़ार पर कब्जे के कई रोचक दृश्य उपस्थित करने वाले हैं, जिसमें कितना भला होगा और कितना बुरा इसका आकलन होना अभी बाकी है।
आज भारत में ग्रामीण बाज़ार तेज़ी से उभर रहा है. ग्रामीण बाज़ार के 78 करोड़ लोग, 50% योगदान देते हैं. पिछले 10 वर्षों में 10 करोड़ ग्रामीण जनसंख्या, गरीबी से बाहर आई है. रु. 65,000 करोड़ की उपभोक्ता वस्तुएं, रु. 45,000 करोड़ के कृषि उत्पाद, रु.8,000 करोड़ के वाहन गांवों में बिक रहे हैं. किसान क्रेडिट कार्डों की संख्या 5 करोड़ तक पहुंच गयी है. 4.8 करोड़ लोगों के पास टीवी हैं. कोलगेट और पेप्सोडेंट ने तो अपना ब्रांड भी हिंदी में पंजीकृत करवाया है. टेलिकॉम में विकास का अगला चरण ग्रामीण बाज़ारों से ही आयेगा।
साभार – लेख– संजय द्विवेदी http://www.swatantraawaz.com/sanjay_diwedi.htm
उपयोगी शब्दार्थ
( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)
करवट f
चौंकाने वाला समृद्धि f चौंधियाने वाला निंदा f आलोचना f शैली f शिल्प m नियंता ज़ाहिर है शब्दावली f प्रायोजित करना जनमानस m विविधता f प्रतीक m मिथक m विस्मित वैभवशाली लोकतांत्रिक व्यवस्था f मुँह चिढ़ाना विस्थापन m सामूहिकता f विद्रूपता f संपन्नता f जिज्ञासा f स्थानीय भावनाएं f.pl. दुरूह संबोधित करना संकल्प m प्रवृत्ति f सामाजिक सरोकार m समुच्चय m जागरूकता f आकलन m पंजीकृत |
posture of sleeping on one side
startling prosperity dazzling condemning, disapproval criticism style architecture controller it’s obvious vocabulary to sponsor popular mind diversity symbol myth surprised prosperous democratic system to make fun of something/someone displacement collectivism disfigurement prosperity desire to know local emotions abstruse to address determination attitude social concern collection awakening evaluation registered |
Linguistic and Cultural Notes
1. The literary style of this essay is characterized by frequent use of figurative language, thereby making the reading somewhat florid for those whose first language is not Hindi. The authorial voice often transcends the literal meaning.
2. In spite of the emphasis on English education in India, use of English language is not common for most people. This is especially true of rural India which is home to more than 70% of the Indian population. For more information on this aspect see the chapter on language in the National Knowledge Commission Report (2006) http://knowledgecommission.gov.in/downloads/report2009/eng/report09.pdf
Language Development
The two following vocabulary categories are designed for you to enlarge and strengthen your vocabulary. Extensive vocabulary knowledge sharpens all three modes of communication, With the help of dictionaries, the internet and other resources to which you have access, explore the meanings and contextual uses of as many words as you can in order to understand their many connotations.
Semantically Related Words
Here are words with similar meanings but not often with the same connotation.
समृद्धि
निंदा विस्मित वैभवशाली संकल्प जागरूकता आकलन |
संपन्नता, धनाढ्यता
आलोचना चकित, आश्चर्य-चकित, अचंभित संपन्न, धनाढ्य दृढ़ निश्चय जागृति मूल्यांकन |
Structurally Related Words (Derivatives)
समृद्धि, समृद्ध, समृद्धिशाली
निंदा, निंदात्मक, निंदक
आलोचना, आलोचक
शिल्प, शिल्पी, शिल्पकार
शब्द, शब्दावली, शब्दसूची, शाब्दिक, शब्दशः
प्रयोजन, प्रायोजित करना
विविध, विविधता, विविधीकरण, वैविध्य
प्रतीक, प्रतीकात्मक
विस्मय, विस्मित
लोकतंत्र, लोकतांत्रिक
समूह, सामूहिक, सामूहिकता
संपन्न, संपन्नता, संपत्ति
स्थान, स्थानीय
संबोधन, संबोधित
वृत्ति, प्रवृत्ति
समाज, सामाजिक
जागरूक, जागरूकता
Comprehension Questions
1. Who is overjoyed about the markets expanding into rural India?
a. companies which make products
b. advertisement agencies
c. people in rural parts of Indis
d. None of the above
2. What is the general outlook of the author?
a. happy
b. sad
c. critical
d. cynical
Supplementary Materials Module 5
Reading
1.द ग्रेट इंडियन विज्ञापन बाज़ार-आनंद मिश्र
http://www.moneymantra.net.in/detailsPage.php?id=8427&title=Cover%20Story&page=cs
2.आईपीएल से काटा विज्ञापन जगत ने माल
http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=4253
3.चुनावी विज्ञापन : मीडिया जगत के लिए संजीवनी बूटी
http://mediakhabar.com/election-advertisement-sanjivni-buti-for-media-industry/
4. विज्ञापन का बाज़ार-एक दृष्टि
Posted on 8 May, 2013 जनरल डब्बा, न्यूज़ बर्थ,
5.विज्ञापन बाज़ार अब चला गांव की ओर
http://www.swatantraawaz.com/sanjay_diwedi.htm
5.विज्ञापन क्षेत्र में रोजगार की बहार
http://www.nayaindia.com/buniyad/advertising-jobs-in-springtime-273823.html
6.जन संचार के पारंपरिक माध्यम
7.विज्ञापन के माध्यम
8.विज्ञापन Outdoor Advertising
http://www.tntpads.com/outdoor_hoardings.html
Listening 1.विज्ञापनों की हिंदी लक्ष्मीनारायण बैजल – ppt
2.“व्यवसाय और हमारी भाषाएँ – “टीवी चैनलों द्वारा अपने उत्पादों के
टेलीमार्केटिंग /टेलीशॉपिंग के हिंदी इंफमर्शिअल्स”
डा. वशिनी शर्मा
3. वरदान साबित हुई पहले की विज्ञापन बुकिंग
http://www.moneymantra.net.in/detailsPage.php?id=1707&title=Cover%20Story&page=cs
4. वित्तीय विज्ञापनों का तिलिस्मी संसार
http://www.moneymantra.net.in/detailsPage.php?id=3889&title=&page=cs
Discussion Ideas Module 5
1. There are hundreds of professionally produced ads on the internet. Please watch the following two and critique them from the viewpoint of marketing. How are they supposed to catch the imagination of consumers?
Vicco Turmeric Cream Ad
http://www.youtube.com/watch?v=2BRYGTqouuE
Coming Home AirTel
http://www.youtube.com/watch?v=-DIfgb3wTYM
2. Watch the video The Facebook Obsession or, if you cannot find it, read about it on the Internet and explain the issue and your own views about it. There is some controversy about the privacy concerns of its members, which are manipulated by the social media.
3. In pairs, debate whether Indian businesses should allocate a sizeable proportion of their advertising budget to social media and online advertising
4. Individually, develop a television slogan for a product of your choice and describe to the class what the ad would look like (i.e. setting, actors, action, product aspects that are emphasized).
5. In teams, debate the state of advertising in India. Are products simply sensationalized through celebrity endorsements (such as Pepsi by Shah Rukh Khan) or else, is there a true skill in the way creative advertising is done in India (e.g. Times of India corruption ad)?
6. In pairs, write and act out a television commercial targeted at rural consumers about either a) a hair oil that maintains black hair, or b) a cream that makes your complexion fair?
7. Role play: Split into groups and come up with competing advertisements for a given product. Make a pitch to the room including a storyboard for the ad.
8. Presentation: Find an example of different ads for the same product. Which different demographics are targeted? What does that say about Indian society/consumers?
9.As a Media Marketing Strategist, what suggestions would you have for your team members in order to promote your company’s product by tapping social media like Facebook?