Economic Media of Hindi
Module 11.4
परंपरागत चिंतन – 4
हिंदी की आर्थिक पत्रकारिता
वैश्वीकरण के इस दौर में ‘माया’ अब ‘महाठगिनी’ नहीं रही। ऐसे में पूंजी, बाजार, व्यवसाय, शेयर मार्केट से लेकर कारपोरेट की विस्तार पाती दुनिया अब मीडिया में बड़ी जगह घेर रही है। हिन्दी के अखबार और न्यूज चैनल भी इन चीजों की अहमियत समझ रहे हैं। दुनिया के एक बड़े बाजार को जीतने की जंग में आर्थिक पत्रकारिता एक साधन बनी है। इससे जहां बाजार में उत्साह है वहीं उसके उपभोक्ता वर्ग में भी चेतना का संचार हुआ है। आम भारतीय में आर्थिक गतिविधियों के प्रति उदासीनता के भाव बहुत गहरे रहे हैं। देश के गुजराती समाज को इस दृष्टि से अलग करके देखा जा सकता है क्योंकि वे आर्थिक संदर्भों में गहरी रुचि लेते हैं। बाकी समुदाय अपनी व्यावसायिक गतिविधियों के बावजूद परंपरागत व्यवसायों में ही रहे हैं। ये चीजें अब बदलती दिख रही हैं। शायद यही कारण है कि आर्थिक संदर्भों पर सामग्री के लिए हम आज भी आर्थिक मुद्दों तथा बाजार की सूचनाओं को बहुत महत्व देते हैं। हिन्दी क्षेत्र में यह क्रांति अब शुरू हो गयी है।
‘अमर उजाला’ समूह के ‘कारोबार’ तथा ‘नई दुनिया’ समूह के ‘भाव–ताव’ जैसे समाचार पत्रों की अकाल मृत्यु ने हिन्दी में आर्थिक पत्रों के भविष्य पर ग्रहण लगा दिए थे किंतु अब समय बदल रहा है इकॉनॉमिक टाइम्स, बिज़नेस स्टैंडर्ड और बिज़नेस भास्कर का हिंदी में प्रकाशन यह साबित करता हैं कि हिंदी क्षेत्र में आर्थिक पत्रकारिता का एक नया युग प्रारंभ हो रहा है। जाहिर है हमारी निर्भरता अंग्रेजी के इकानामिक टाइम्स, बिजनेस लाइन, बिजनेस स्टैंडर्ड, फाइनेंसियल एक्सप्रेस जैसे अखबारों तथा बड़े पत्र समूहों द्वारा निकाली जा रही बिजनेस टुडे और मनी जैसे पत्रिकाओं पर उतनी नहीं रहेगी। देखें तो हिन्दी समाज आरंभ से ही अपने आर्थिक संदर्भों की पाठकीयता के मामले में अंग्रेजी पत्रों पर ही निर्भर रहा है, पर नया समय अच्छी खबरें लेकर आ रहा है।
भारत में आर्थिक पत्रकारिता का आरंभ ब्रिटिश मैनेजिंग एजेंसियों की प्रेरणा से ही हुआ है। देश में पहली आर्थिक संदर्भों की पत्रिका ‘कैपिटल’ नाम से 1886 में कोलकाता से निकली। इसके बाद लगभग 50 वर्षों के अंतराल में मुंबई तेजी से आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र बना। इस दौर में मुंबई से निकले ‘कॉमर्स’ साप्ताहिक ने अपनी खास पहचान बनाई। इस पत्रिका का 1910 में प्रकाशन कोलकाता से ही प्रारंभ हुआ। 1928 में कोलकाता से ‘इंडियन फाइनेंस’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। दिल्ली से 1943 में इस्टर्न इकॉनॉमिक्स और फाइनेंसियल एक्सप्रेस का प्रकाशन हुआ। आजादी के बाद भी गुजराती भाषा को छोड़कर हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में आर्थिक पत्रकारिता के क्षेत्र में कोई बहुत महत्वपूर्ण प्रयास नहीं हुए। गुजराती में ‘व्यापार’ का प्रकाशन 1949 में मासिक पत्रिका के रूप में प्रारंभ हुआ। आज यह पत्र प्रादेशिक भाषा में छपने के बावजूद देश के आर्थिक जगत की समग्र गतिविधियों का आइना बना हुआ है। फिलहाल इसका संस्करण हिन्दी में भी एक साप्ताहिक के रूप में प्रकाशित हो रहा है। इसके साथ ही सभी प्रमुख चैनलों में अनिवार्यतः बिज़नेस की खबरें तथा कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं लगभग दर्जन भर बिज़नेस चैनलों की शुरुआत को भी एक नई नजर से देखा जाना चाहिए। ज़ी बिजनेस, सीएनबीसी आवाज़, एनडीटीवी प्रॉफ़िट आदि।
वैश्वीकरण और बहुराष्ट्रीय कपनियों के आगमन से पैदा हुई स्पर्धा ने इस क्षेत्र में क्रांति सी ला दी है। बड़े महानगरों में बिज़नेस रिपोर्टर को बहुत सम्मान से देखा जाता है। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में वेबसाइट पर काफ़ी सामग्री उपलब्ध है। अंग्रेज़ी में तमाम समृद्ध वेबसाइट्स हैं जिनमें सिर्फ़ आर्थिक विषयों की इफरात सामग्री उपलब्ध है। हिन्दी क्षेत्र में आर्थिक पत्रकारिता की दयनीय स्थिति को देखकर ही वरिष्ठ पत्रकार वासुदेव झा ने कभी कहा था कि हिन्दी पत्रों के आर्थिक पृष्ठ ‘हरिजन वर्गीय पृष्ठ हैं। उनके शब्दों में – ‘भारतीय पत्रों के इस हरिजन वर्गीय पृष्ठ को अभी लंबा सफर तय करना है। हमारे बड़े बड़े पत्र वाणिज्य-समाचारों के बारे में एक प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त दिखते हैं। अंग्रेजी पत्रों में पिछलग्गू होने के कारण हिन्दी पत्रों की मानसिकता दयनीय है। श्री झा की पीड़ा को समझा जा सकता है, लेकिन हालात अब बदल रहे हैं। बिज़नेस रिपोर्टर तथा बिज़नेस एडीटर की मान्यता और सम्मान हर पत्र में बढ़ा है। उन्हें बेहद सम्मान के साथ देखा जा रहा है। पत्र की व्यावसायिक गतिविधियों में भी उन्हें सहयोगी के रूप में स्वीकारा जा रहा है। समाचार पत्रों में जिस तरह पूँजी की आवश्यकता बढ़ी है, आर्थिक पत्रकारिता का प्रभाव भी बढ़ रहा है। व्यापारी वर्ग में ही नहीं समाज जीवन में आर्थिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ी है। खासकर शेयर मार्केट तथा निवेश संबंधी जानकारियों को लेकर लोगों में एक खास उत्सुकता रहती है।
ऐसे में हिन्दी क्षेत्र में आर्थिक पत्रकारिता की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है, उसे न सिर्फ व्यापारिक नजरिए को पेश करना है, बल्कि विशाल उपभोक्ता वर्ग में भी चेतना जगानी है। उनके सामने बाजार के संदर्भों की सूचनाएँ सही रूप में प्रस्तुत करने की चुनौती है ताकि उपभोक्ता और व्यापारी वर्ग तमाम प्रलोभनों और आकर्षणों के बीच सही चुनाव कर सकें। आर्थिक पत्रकारिता का एक सिरा सत्ता, प्रशासन और उत्पादक से जुड़ा है तो दूसरा विक्रेता और ग्राहक से। ऐसे में आर्थिक पत्रकारिता की जिम्मेदारी तथा दायरा बहुत बढ़ गया है। हिन्दी क्षेत्र में एक स्वस्थ औद्योगिक वातावरण, व्यावसायिक विमर्श, प्रकाशनिक सहकार और उपभोक्ता जागृति का माहौल बने तभी उसकी सार्थकता है। हिन्दी ज्ञान विज्ञान के हर अनुशासन के साथ व्यापार, वाणिज्य और कारर्पोरेट की भी भाषा बने। यह चुनौती आर्थिक क्षेत्र के पत्रकारों और चिंतकों को स्वीकारनी होगी। इससे भी भाषायी आर्थिक पत्रकारिता को मान–सम्मान और व्यापक पाठकीय समर्थन मिलेगा।
संजय द्विवेदी
(प्रवक्ता.काम से साभार)
उपयोगी शब्दार्थ
( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)
वैश्वीकरण m
दौर m माया f महाठगिनी f अहमियत f आर्थिक पत्रकारिता f चेतना f आर्थिक गतिविधि f उदासीनता f आर्थिक संदर्भ m समुदाय m व्यावसायिक गतिविधि f परंपरागत व्यवसाय m आर्थिक मुद्दा m ग्रहण m निर्भरता f पाठकीयता f प्रेरणा f अंतराल m अनिवार्यतः उपलब्ध इफरात सामग्री f दयनीय स्थिति f वाणिज्य समाचार m पिछलग्गू m/f मानसिकता f प्रलोभन m औद्योगिक वातावरण m व्यावसायिक विमर्श m प्रकाशनिक सहकार m उपभोक्ता जागृति f माहौल m सार्थकता f |
globalization
phase money a big thug importance economic journalism consciousness economic activity indifference economic context group commercial activity traditional business economic issue eclipse dependence readership inspiration interval necessarily available abundant materials pitiable situation business news hanger-on mentality temptation industrial environment business discussion publishing cooperation consumer awakening environment meaningfulness |
Linguistic and Cultural Notes
1. Hindi has a system of reduplicating nouns. The first type is echo constructions where nouns are repeated with their first syllable replaced by the sound व. One example from this unit is भाव–ताव but this is possible with almost any noun चाय–वाय, किताब–विताब. Such reduplicated forms are usually used in informal contexts and the echo word gives the sense of ‘etcetera’. The second type is where a noun is accompanied by another semantically related noun, for example – देश–परदेश (or its variant देस–परदेस), पेड़–पौधे, कलम–किताब, etc. While the former type is quite productive the latter type is restricted to conventionalized reduplicated forms.
2. India’s new economic environment, has considerably increased the demand and supply of media in Hindi and other regional languages. In spite of the prominence of English in India, more than 90% of its people are not proficient in the language.
Language Development
The two following vocabulary categories are designed for you to enlarge and strengthen your vocabulary. Extensive vocabulary knowledge sharpens all three modes of communication, With the help of dictionaries, the internet and other resources to which you have access, explore the meanings and contextual uses of as many words as you can in order to understand their many connotations.
Semantically Related Words
Here are words with similar meanings but not often with the same connotation.
वैश्वीकरण
माया अहमियत समुदाय वाणिज्य प्रलोभन माहौल |
भूमण्डलीकरण
धन-दौलत महत्व, महत्ता समूह व्यापार, व्यवसाय लालच वातावरण |
Structurally Related Words (Derivatives)
ठग, ठगिनी, महाठगिनी
अहम, अहमियत
उदासीन, उदासीनता
परंपरा, परंपरागत, पारंपरिक
निर्भर, निर्भरता
पाठक, पाठकीयता
प्रेरणा, प्रेरणाप्रद, प्रेरणादायक, प्रेरित
अनिवार्य, अनिवार्यता, अनिवार्यतः
दया, दयनीय, दयालु, दयावान, निर्दय, निर्दयी
लोभ, प्रलोभन
विक्रय, विक्रेता, बिक्री
उद्योग, उद्योगपति, औद्योगिक, औद्योगिकीकरण, प्रौद्योगिकी
प्रकाशन, प्रकाशक, प्रकाशनिक
अर्थ, सार्थक, सार्थकता, निरर्थकता
Comprehension Questions
1.What is the central theme of the author?
a. Rise of Indian languages in the economic world is essential.
b. English’s status is irreversidble and should be accepted.
c. Economic journalism in local languages is not getting anywhere.
d. Economic journalism is important for national development.
2. Based on the article, traditionally an economic revolution in India suffered due to
a. indifference to economic matters
b. dominance of English journalism
c. late arrival of globalization ideas
d. lack of information distribution
Supplementary Materials Module 11
Reading
1.भूमंडलीकरण ,उदारीकरण ,वैश्वीकरण बनाम सांस्कृतिक संघर्ष
http://haridhari.blogspot.in/2013/05/blog-post_15.html
2.सामाजिक पहल से खुला विकास का रास्ता- बाबा मायारामhttp://hindi.indiawaterportal.org/content/
3.विकास, भूमंडलीकरण और दृश्यों का मायालोक
जगदीश्वर चतुर्वेदी
http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.in/2009/08/blog-post_14.html
4.देशी अर्थ शास्त्र भी देखना चाहिए
http://deepakraj.wordpress.com/2010/01/10/indian-economics-hindi-article/
5.भारतीय संदर्भ में आर्थिक विकास और सामाजिक दायित्व स्रोत : http://www.deendayalupadhyaya.org/leacture4_hi.html
पं .दीनदयाल उपाध्याय
6.भारत का आर्थिक इतिहास -विकीपीडिया से
http://hi.wikipedia.org/wiki
7. हिंदी की आर्थिक पत्रकारिता
http://www.pravakta.com/economic-journalism-in-hindi-struggle-to-identify-sanjay-dwivedi
8.बाज़ार पहले आपको खरीदता है, फिर नीलाम कर देता है…
9.नव उदारवादी पूंजीवाद–बाज़ारवाद की व्यवस्थागत बीमारी का नतीजा है यह वैश्विक आर्थिक संकट
http://kaushalsoch.blogspot.com/2009/05/blog-post_0
सुनील
http://zsanchar.org
11. खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी: विकास को या विनाश को न्यौता?
दुनिया भर के अनुभवों से साफ़ है कि खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी को इजाजत देने से फायदे कम हैं और नुकसान ज्यादा
http://teesraraasta.blogspot.com/2012/08/blog-post_11.html
12.जब किसी व्यक्ति की आय सीमा पार कर जाती है
http://www.moneymantra.net.in/detailsPage.php?id=5720&title=&page=cs
13.खुदरा क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय व्यापार नीति बनाए जाने की जरूरत
http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=85444
Listening
1.अन्नदाता-जैविक तरीक़े से फसल को कीट से ऐसे बचाएँ
https://www.youtube.com/watch?v=AvktbtaACH0
2.बायोगैस सयंत्र-झाबुआ
https://www.youtube.com/watch?v=lk7hCu2sTCs
3.Globalization
https://www.youtube.com/watch?v=3oTLyPPrZE4
4.India & Globalisation
https://www.youtube.com/watch?v=i_ntVgNP604
5.Globalisation and the Indian Economy 001
https://www.youtube.com/watch?v=QhJm9XBNpVw
Published on Mar 6, 2012
6.Globalisation and the Indian Economy 003
https://www.youtube.com/watch?v=uHfB5lHYJyA
7.Globalization and International Trade
https://www.youtube.com/watch?v=KtY9stUJ8L4
8.How Devaluation of RUPEE Against Dollar leads to collapse BHAR
http://www.youtube.com/watch?v=LCYoq8lVkzA
Uploaded on Nov 21, 2011
PLZ PLZ plz watch this video and know How Devaluation of RUPEE Against Dollar Gave Loss of Rs 245 Lakh Crore in one year.
Discussion Ideas Module 11
1. Debate the role of Hindi and other Indian languages in Indian business. Is English sufficient?
2. There is concern that small local retailers will be displaced if Indian consumer markets are further opened to foreign firms. Discuss how the Indian consumer and labor markets might evolve if Indian consumer markets were more open.
3. With all this wealth coming to India, the wealthy are becoming richer, but a majority of people in India have experienced little change. 40% of the world’s underweight children under 5 years of age reside in India. What is the responsibility of the newly wealthy India towards the progress of the entire nation, not just the educated and wealthy classes?
4. As times change and international influences become more evident in India, how do you anticipate the role of local languages such as Hindi? Do you think that the role of local languages will grow or further diminish?
5. Find an article in a Hindi-language publication on the impact of India’s development on traditional communities and summarize its arguments.
6. Several non-profits have been founded over the years to help traditional artisans keep their crafts financially viable. Research such an organization and present its work. Do you think it is really effective?