Module 12b

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Globalization and World Trade Organization (2)

Module 12.2

भूमंडलीकरण – 2

भूमंडलीकरण और विश्व व्यापार संगठन (2)

 

मेरे मत में भूमंडलीकरण या कंवर्जेस का विरोध करना पागलपन है। सिएटल में विरोध का जो प्रदर्शन हुआ वह पागलपन था। विरोध करनेवालों में कई श्रमिक संगठनवादी थे जो अपने बाजार की रक्षा कर रहे थे। विरोध करनेवालों की कोशिश है कि भारत का उत्पादन उनके यहां तक न पहुंचे। लेकिन विश्व व्यापार संगठन का प्रयास है कि सब आगे बढ़ें। विश्व व्यापार से गरीब और अमीर दोनों को समान लाभ पहुंचे। इसलिए स्वदेशी के नाम पर संरक्षण चाहनेवालों की एक ही कोशिश है कि वे अपने समाज और देश को बंद रखना चाहते हैं क्योंकि ऐसे लोगों के विशेष हित होते हैं। भारत के श्रमिक संगठनों और वामपंथियों ने भी देश को विश्व व्यापार के लिए बंद रखने के लिए दबाव बना रखा है क्योंकि वे चाहते हैं कि विदेशी उत्पाद हमारे यहां न पहुंचे। विदेशी उत्पाद और स्वदेशी उत्पाद के बीच कोई प्रतिस्पर्धा न हो । याद रखिए प्रतिस्पर्धा से उत्पाद में गुणवत्ता आती है और कीमतें घटती हैं। स्वदेशी कंपनियों को भी इससे लाभ मिलता है। उदाहरण के लिए देश में लंबे समय तक एक ही कार एंबेसडर का युग रहा। लेकिन बाजार खुलने के बाद मारुति कार आई। इसके बाद कई प्रकार की विदेशी कारें आ गईं। मारुति उद्योग को भी खुले बाजार की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार होना पड़ा। संक्षेप में प्रतिस्पर्धा एक प्रकार का स्कूलहोता है जिसमें कंपनियां गुणवत्ता में सुधार और मूल्यों को घटाने का पाठ सीखती हैं। अमेरिका भी इस प्रक्रिया से गुजरा है। वहां की मोटर कंपनियों ने प्रत्येक राष्ट्रपति से गुहार लगाई थी कि  जापानी कारों के आयात पर रोक लगाई जाए क्योंकि वहां की कार कंपनियों को जापानी कार कंपनियों के साथ कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन अब वे कंपनियां कह रही हैं  कि जापानी कारों के आने से उन्हें लाभ हुआ। उन्होंने अपनी कारों के माडल में सुधार किया है। कीमतें भी कम की हैं। यह सही है कि प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया बहुत पीड़ाजनक होती है। लेकिन यह पीड़ा लाभदायक होती है। इससे कंपनी और उपभोक्ता दोनों को लाभ पहुंचता है। भारत में देख लें। 1990 से यहां प्रतिस्पर्धा की लहर चल रही है। परिणामस्वरूप फ्रिज, कंप्यूटर, टीवी, कार जैसी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि नहीं हुई। इनकी गुणवत्ता में सुधार आया है। टेलीफोन क्षेत्र में भी देखा जा सकता है। आज काल-दरें घट रहीं है। टेलीफोन के नए-नए माडल दिखाई दे रहे हैं क्योंकि पिछले पांच वर्षों में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा है। यह सब प्रौद्यौगिकी के कारण संभव हुआ है।

अब सवाल उठता है कि भूमंडलीकरण का गरीबों के साथ क्या संबंध है ? मैं कहता हूं दोनों के बीच संबंध है। गरीबी एक प्रकार की बीमारी है। इस रोग का निराकरण विकास दर में वृद्धि से संभव है। इसलिए विकास-विकास-विकास होना चाहिए। कुछ लोगों का तर्क है कि विकास असमान होता है। इससे विषमता पैदा होती है लेकिन यह सही नहीं है। मैंने अपनी पुस्तक इंडिया अनबाउंड में इसके बारे में विस्तार से चर्चा की है और यह बतलाया है कि विकास से विषमता पैदा नहीं होती है। मैं यहां विश्व बैंक के एक अध्ययन का उल्लेख करना चाहूंगा। विश्व बैंक ने दो लोगों डेविड डालर और आर्ट ग्रे से करीब 90 देशों की अर्थव्यवस्था (1945 से 1990) का अध्ययन कराया था। अध्ययन में पाया गया कि गरीब देशों की दीर्घकालिक विकास की दर समान रहती है। सुरेश तेंदुलकर, मार्टिन देविलोन जैसे अर्थशास्त्रियों के अनुसार 1980 से लेकर अब तक गरीबी सीमा रेखा से नीचे रहनेवाली आबादी में से प्रति वर्ष एक प्रतिशत लोग सीमा रेखा को पार कर रहे हैं। वे ऊपर उठ रहे हैं। 1980 में देश की कुल आबादी का 46 प्रतिशत भाग गरीबी की सीमा रेखा से नीचे था। लेकिन योजना आयोग के अनुसार अब केवल 26 प्रतिशत लोग ही इस श्रेणी में आते हैं। मैं समझता हूं कि यदि यही रफ्तार जारी रहती है तो 2010 तक यह प्रतिशत घटकर 16 रह जाएगा। और दस प्रतिशत लोग सीमा रेखा से ऊपर उठ जाएंगे। इस समय गरीबी की सीमा रेखा एक डालर प्रतिदिन (46-47रु) है जिसे दो डालर करने की बात चल रही है। पर मैं यहा यह भी कहना चाहूंगा कि हमारे समाजवादी काल के दौरान शून्य प्रतिशत लोग सीमा रेखा से ऊपर उठे। समाजवाद के नाम पर केवल राजनीति की गई है। गरीबों को सबसे कम फायदा मिला। लेकिन अब भूमंडलीकरण से गरीबों को लाभ पहुंचेगा। याद रखिए, भूमंडलीकरण की वास्तविक शुरुआत राजीव गांधी के काल से हुई थी। उस समय दीर्घकालिक वित्तीय नीतिगत परिवर्तन किए गए। इंदिरा गाधी ने भी सीमेंट का डी-कंट्रोल किया था।

वैसे मैं स्वीकार करता हूं कि विश्व व्यापार प्रक्रिया में भेदभाव नहीं होना चाहिए। विश्व व्यापार संगठन को चाहिए कि वह भेदभाव और असमानता पर आधारित स्थितियों को दूर करे। उदाहरण के लिए यूरोप व अमेरिका में  किसानों को मिल रही सब्सिड़ी समाप्त होनी चाहिए । इसके बाद ही दूसरे देशों से इसकी अपेक्षा की जा सकती है। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि यदि अमेरिका जैसे देश गलती पर हैं तो हम लोग भी वैसा न करें। मैं देशों के दरवाजे खोलने के साथसाथ संतुलन बनाए रखने के पक्ष में हूं। कृषि व्यापार क्षेत्र की विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए। कपड़ा उद्योग की प्रतिस्पर्धा में शामिल होने की क्षमता भारत में है। यदि देश समाजवाद की नीति पर न चला होता तो हमारी क्षमता और भी अधिक होती। विश्व व्यापार में भारत का ऊंचा स्थान रहता। मेरा दृढ मत है कि राज्य को व्यापार और उद्योग से दूर रहना चाहिए। राज्य को चाहिए कि वह शासन-प्रशासन सुचारू रूप से चलाए। किसी का एकाधिकार न बढ़ने दे। इसे रोकने के लिए विदेशी कंपनियों और उत्पादों के लिए अपने देश के बाजार खोले । प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करे लेकिन स्वयं व्यापारउद्योग से दूर रहे। 19वीं सदी की मुक्त अर्थव्यवस्था की अवधारणा ने राज्य के हस्तक्षेप को बिल्कुल स्वीकार नहीं किया था। लेकिन अब तक के अनुभवों से यह जरूर समझ में आया है कि 21वीं सदी की मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था में राज्य एक नियामक की भूमिका जरूर निभा सकता है। मिसाल के लिए सेबी और टीआरआई जैसी नियामक संस्थाएं प्रतिस्पर्धा को सुचारू रूप से संचालित करने में उपयोगी भूमिका निभा सकती हैं। 19वीं सदी के लोगों को राज्य की भूमिका की कल्पना नहीं थी।  पर आज यह जरूरी है। तब की मुक्त अर्थव्यवस्था और आज की व्यवस्था में यही सबसे बड़ा फ़र्क है। इसलिए मैं मानता हूं कि राज्य का रेगुलेटरी रोल रहना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में भूमंडलीकरण और विश्व व्यापार संगठन को हमारे सबसे बड़े दोस्त के रूप में देखा जाना चाहिए।

(समयांतर द्वारा प्रकाशित और रामशरण जोशी द्वारा संपादित पुस्तक वैश्वीकरण के दौर में’  से साभार। यह लेख गुरचरण दास के साक्षात्कार पर आधारित है, पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 2006) सस

गुरचरणदास

उपयोगी शब्दार्थ

( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)

प्रदर्शन m

श्रमिक संगठनवादी m/f

विश्व व्यापार संगठन m

स्वदेशी

संरक्षण m

वामपंथी              

उत्पाद m

प्रतिस्पर्धा f

गुणवत्ता f

प्रक्रिया  f

आयात m

पीड़ाजनक

लाभदायक

निराकरण m

विषमता f

दीर्घकालिक विकास m

वित्तीय

नीतिगत परिवर्तन m

औपचारिकीकरण m

संतुलन m

विसंगति f

एकाधिकार m

प्रोत्साहित करना

अवधारणा f

हस्तक्षेप m

अनुभव m

मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था f

नियामक

भूमिका  f

परिप्रेक्ष्य m

demonstration

labor unionist

World Trade Organizaton (WHO)

indigenous, produced within one’s country

protection

leftist              

product

competition

quality

process

import

painful

profitable, advantageous

removal

disparity

long term development

financial

policy-related changes

formalization

balance

anomaly

monoply

to encourage

concept

intervention

experience

free market economy

regulatory

role, background

perspective

Linguistic and Cultural Notes

1. The author Gurcharan Das writes in English and in all probability the above article is a translation. In most translated works, one misses the natural flow of the target language, but fortunately this particular ‘translation’ reads very well as it carries over the meaning and the tone of the original text while preserving the idiom and textual cohesiveness of Hindi. In the field of translation, a new word has been coined in recent times for such good translations. The word is ‘trans-creation’ which is being used more in the field of developing ads and commercials as most ads and commercials are written first in English and then trans-created in Hindi or other regional languages.

2. Socialism has been an inspirational concept for leaders of India before and after 1947 when India received her independence. The underlying idea of socialism was to help the poor. The concept of the mixed economy drove India’s economic policies until 1991 when a revolutionary change in favor of the market economy took over.

Language Development

The two following vocabulary categories are designed for you to enlarge and strengthen your vocabulary.  Extensive vocabulary knowledge sharpens all three modes of communication, With the help of dictionaries, the internet and other resources to which you have access, explore the meanings and contextual uses of as many words as you can in order to understand their many connotations.  

Semantically Related Words

Here are words with similar meanings but not often with the same connotation.

श्रमिक

स्वदेशी

संरक्षण

प्रतिस्पर्धा

पीड़ाजनक

दीर्घकालिक

परिवर्तन

संतुलन

प्रोत्साहित करना

हस्तक्षेप

अनुभव

मज़दूर

देशी

रक्षा

स्पर्धा, प्रतिद्वन्द्विता, प्रतियोगिता, मुकाबला

पीड़ादायक

दीर्घकालीन

बदल, बदलाव

तोलना

प्रोत्साहन देना

दख़लन्दाज़ी

अनुभूति

Structurally Relaetd Words (Derivatives)

दर्शन, दर्शक, दृश्य, दृश्यता, प्रदर्शन, प्रदर्शनी, प्रदर्शक, प्रदर्शनकारी, दार्शनिक

श्रम, श्रमिक, श्रमदान, परिश्रम

देश, देशी, देसी, स्वदेशी, परदेश, परदेस, परदेसी, विदेश, विदेशी

रक्षा, सुरक्षा, रक्षण, रक्षक, संरक्षण, अनुरक्षण, आरक्षण

स्पर्धा, प्रतिस्पर्धा, प्रतिस्पर्धात्मक

गुण, गुणी, गुणवान, गुणवत्ता

क्रिया, प्रक्रिया, प्रतिक्रिया, प्रतिक्रियात्मक, सक्रिय, सक्रियता, निष्क्रिय, निष्क्रियता

लाभ, लाभांश, लाभदायक,लाभप्रद, लाभकारी

समता, विषमता

नीति, नीतिगत, नैतिक

उपचार, औपचारिक, औपचारिकता, औपचारिकीकरण, अनौपचारिक, अनौपचारिकीकरण

संगति, विसंगति

उत्साह, उत्साही, उत्साहवर्धन ,उत्साहवर्धक, उत्साहजनक, प्रोत्साहन, प्रोत्साहित

अनुभव, अनुभवी, अनुभव-हीन, अनुभूति

नियम, नियमित, नियामक, अधिनियम, विनियम

Comprehension Questions

1. Based on the text, which statement is correct?

a. Some Indian organizations protested against importing foreign goods.

b. Some American organizations protested against importing foreign goods.

c. Globalization has benefitted poor people in India is a proven fact.

d. Societies that are not open to foreign goods have their own reasons.

2. Based on the text, is there a connection between globalization and poverty?

a. definitely yes

b. definitely no

c. cotroversial

d. research in progress

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