Neo-Liberal Mess in India
Module 12.3
भूमंडलीकरण – 3
नव-उदारवादी दलदल में भारत
गरीबी, गांवों से शहरों और पिछड़े राज्यों से अपेक्षाकृत विकसित राज्यों की ओर पलायन, भ्रष्टाचार, अपराध, आतंकवाद, सामाजिक विषमता, क्षेत्रीय असंतुलन, मलिन बस्तियां आदि हमारे देश में अनेक दशकों से विद्यमान हैं मगर इनमें परिणामात्मक एंव गुणात्मक परिवर्तन 1980 के दशक के उत्तरार्ध से हो रहे हैं। लाखों दावों के बावजूद गरीबी बढ़ती ही जा रही है। सुरेश तेंदुलकर की रिपोर्ट देखें या अर्जुन सेनगुप्ता की अथवा गरीबी-रेखा के नीचे जिंदगी बसर करने वालों से जुड़ी विशेषज्ञ समिति की, सब यही रेखांकित करती हैं कि देश में आर्थिक विषमता तेजी से बढ़ रही है। गरीबी की मार से बहुत बड़ा जनसमुदाय त्रस्त है। अभी-अभी प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार 2008-2009 में अति मंदी के कारण तीन करोड़ 40 लाख अतिरिक्त लोगों को गरीबों की जमात में धकेल दिया गया है। देश में आतंक और माओवादी आंदोलन का तेजी से विस्तार हो रहा है। अपहरण और लूटमार की वारदातें बढ़ती जा रही हैं। एक जमाना था जब संसद के परिसर से दिल्ली परिवहन निगम की बसें आती-जाती थीं और राष्ट्रपति भवन का परिसर और दुकानें आम लोगों के लिए खुली रहती थीं। आज वे वर्जित क्षेत्र के अंतर्गत हैं। अधिकतर कॉलोनियों में गेट बन गए हैं तथा चौकीदार तैनात हैं। क्षेत्रीयता जोर पकड़ रही है। महाराष्ट्र और असम की घटनाएं इसे उजागर करती हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त लोग उच्च पदों पर आसीन होते जा रहे हैं। न्यायपालिका में बैठे व्यक्तियों पर भी अंगुली उठाई जा रही है। धनाढ्य अपनी दौलत का अश्लील प्रदर्शन कर रहे हैं और सत्ता से बाहर जाने पर भी राजनेता अपने सुरक्षाकर्मियों को बनाए रखने के लिए हर संभव दबाव डालते हैं। मीडिया की कोई जनसंवेदना प्रतिबद्धता नहीं रह गई है। कम से कम लागत पर अधिकाधिक विज्ञापन-आय प्राप्त करना मुख्य उद्देश्य है। बॉलीवुड, क्रिकेट और दलाल स्ट्रीट के अतिरिक्त जोर सनसनीखेज खबरों और मुद्दों पर है।
उपर्युक्त परिवर्तन अकारण नहीं हुए हैं। वस्तुत: इनकी जड़ में देश द्वारा नव-उदारवादी आर्थिक चिंतन को अपनाकर अपने दृष्टिकोण एवं नीतियों को नेहरू युग के विपरीत ले जाया जा रहा है। जो काम पश्चिमी दबावों और धमकियों, फोरम ऑफ फ्री इंटरप्राइज, स्वतंत्र पार्टी आदि नहीं करा पाई वह बड़े ही शान्तिपूर्ण ढंग से हो गया। इस परिवर्तन की पृष्ठभूमि जनता पार्टी की सरकार ने तैयार की और विश्वनाथ प्रताप सिंह और चन्द्रशेखर की सरकारों ने उसमें भारी योगदान दिया। उनके कुप्रबंधन का ही नतीजा था कि ”समाजवादी” चन्द्रशेखर के वित्तमंत्री और अभी भाजपा के नेता भारत से सोना लेकर विदेश गिरवी रख आए। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंक के द्वारा नेहरु का रास्ता छोड़ नव-उदारवादी मार्ग अपनाने के लिए अमेरिकी दबाव बढ़ा। एल के झा से लेकर गुरचरणदास इसके समर्थन में अपनी किताबें लेकर आए। अंतत: नरसिंह राव की सरकार ने नव-उदारवाद को अपनाने का फैसला किया और उसके अनुकूल आर्थिक सुधार कार्यक्रम आरंभ किए जो वाजपेयी की राजग सरकार ने जारी रखे और अब भी जारी हैं। यद्यपि नव-उदारवाद शब्द पिछले तीन दशकों में अधिक प्रचलित हुआ है और दावा किया जा रहा है कि वही आगे की दुनिया का मार्गदर्शक है तथा वर्तमान युग उसी के नाम है, फिर भी उसका पहली बार इस्तेमाल जर्मन समाजविज्ञानी अलेक्जेंडर रुस्टो ने 1938 में किया। उन्होंने क्लासिकी उदारवाद को पुन: परिभाषित किया। मान्यता थी कि पूर्ण प्रतिद्वंद्विता तथा बाजार से जुड़ी तमाम जानकारियों से अवगत होने की स्थिति में उत्पादन और वितरण समुचित ढंग से होगा। विज्ञापन का उद्देश्य सही जानकारी देना मात्र होगा। कहना न होगा कि उपर्युक्त मान्यताएं कब की समाप्त हो चुकी हैं। पूर्ण प्रतिद्वंद्विता इजारेदारी के उद्भव और अर्थव्यवस्था पर हावी होने के कारण कोसों पीछे छूट गई है। उपभोक्ता हो या उत्पादक या फिर श्रमिक, किसी को पूरी जानकारी नहीं मिलती। विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य लोगों को भ्रमित करना ही रह गया है। आप इलेक्ट्रानिक मीडिया देखें या प्रिंट मीडिया, और उदाहरण के लिए वाशिंग पाउडर को लें आपके लिए यह फैसला करना कठिन होगा कि कौनसा अच्छा है। ब्रांड, पेटेंट आदि अनेक तरीकों से सही जानकारी और मुक्त प्रतिद्वंद्विता को रोका जाता है। ब्रेटनवुड्स प्रणाली के अवसान के साथ परिवर्तनीय मुद्राओं के युग का आरंभ हुआ और भूमंडलीय पूंजी बाजार का जन्म हुआ। विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया। सोवियत संघ और समाजवादी खेमा धराशायी हो गया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन और आत्मनिर्भर स्वतंत्र अर्थव्यवस्था का सपना समाप्त हो गया। सूचना और संचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए और पूंजीवाद का पुराना सपना कि सारे विश्व को बाजार बना संचालित किया जाये, साकार होता दिखने लगा। अमरीका एकमात्र महाशाक्ति बन गया। भूमंडलीकरण का एक नया दौर शुरू हुआ, जिसने राष्ट्र-राज्य और उसकी सार्वभौमिकता से जुडी मान्यताओं को निरर्थक कर दिया।
इस नए दौर का वैचारिक आधार नव-उदारवाद बना जिसे ”वाशिंगटन आम राय ”के रूप में जॉन विलियम्सन ने 1990 में प्रस्तुत किया। इसे अमेरीका सरकार (ट्रेजरी, फेडरल रिजर्व और वाणिज्य विभाग) और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक और इंटर अमेरिकन बैंक ने आगे बढ़ाया। जोसेफ स्टिग्लिट्ज के शब्दों में, ‘यह आम राय वाशिंगटन की 15वीं और 19 वीं सड़कों पर बनी थी। कहना न होगा कि इन्हीं सड़कों पर अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएं स्थित हैं। याद रहे कि इस आम राय के प्रेरणा स्रोत शिकागो स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स के मिलटन फ्रीडमैन, जार्ज स्टिग्लर, फ्रेडरिक फॉन हायक आदि रहे‘। वाशिंगटन आम राय में दस बातें हैं: (1) राजकोषीय अनुशासन : बजटीय घाटे को सीमित रखने के लिए कठोर कदम, (2) सार्वजनिक व्यय-संबंधी प्राथमिकताओं में परिवर्तन, सबसीडी में कटौती और गरीबी निवारण के कार्यक्रमों की समाप्ति (3) कर-संबंधी सुधार : कराधान के आधार का विस्तार और कर की सीमान्त दर में कमी, (4) वित्तीय उदारीकरण : ब्याज दरों का बाजार द्वारा निर्धारण, (5) विनिमय दर का ऐसा निर्धारण कि गैर परम्परागत निर्यात बढ़े, (6) व्यापार का उदारीकरण, (7) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बेरोकटोक, (8) निजीकरण, (9) सब प्रकार के विनियमों और प्रतिबंधों को हटा नई देशी-विदेशी फर्मों के प्रवेश और काम करने पर कोई रोक नहीं हो, और (10) संपत्ति संबंधी नियम कानूनों में सुधार जिससे संपत्ति प्राप्त, इस्तेमाल और हस्तांतरण करने में कोई दिक्कत न हो। इस नव-उदारवादी चिन्तन को बढ़ाने और प्रतिष्ठित करने में थैचर, रीगन, चिली के तानाशाह पिनोशे और चीन के नेता देंग शिआयोपिंग का विशेष हाथ रहा। विश्व प्रसिद्ध मार्क्सवादी विद्वान डेविड हार्वे ने अपनी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित बहुचर्चित पुस्तक ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ नियोलिबरलिज्म‘ के मुख्य पृष्ठ पर इन चारों महानुभावों के चित्र अनायास नहीं दिए हैं। साफ है कि इस चिंतन को अपनाने में औपचारिक वैचारिक प्रतिबद्धता आड़े नहीं आई। भारत ने इसे खुले आम 1991 में अपनाया और बीस वर्षों बाद भी इसके तमाम कुपरिणामों से बिना विचलित हुए उस पर कायम है।
– गिरीश मिश्र
उपयोगी शब्दार्थ
( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)
अपेक्षाकृत
पलायन m आतंकवाद m सामाजिक विषमता f क्षेत्रीय असंतुलन m मलिन बस्तियां f pl. परिणामात्मक गुणात्मक उत्तरार्ध m दावा m विशेषज्ञ समिति f रेखांकित करना जनसमुदाय m त्रस्त संयुक्त राष्ट्र m मंदी f अश्लील प्रदर्शन m जनसंवेदना f प्रतिबद्धता f सनसनीखेज खबर m नव-उदारवादी दृष्टिकोण m परिभाषित करना इजारेदारी f समाजवादी खेमा m धराशायी होना गुटनिरपेक्ष आत्मनिर्भर अभूतपूर्व पूंजीवाद m राकोषीय प्राथमिकता f कराधान m सीमान्त दर f वित्तीय उदारीकरण m विनिमय दर f विनियम m प्रतिबंध m |
relatively
fleeing terrorism social inequality regional imbalance dirty settlements consequential multiplicative latter half claim specialist-committee to underline group of people, masses afraid, affected United Nations economic depression immoral display people’s sensitivity commitment sensational news neo-liberal point of view to define monopoly socialist camp to be devastated non-aligned self-dependant unprecedented capitalism =राजकोषीय related to government budget priority taxation custom rate economic liberalization exchange rate regulation restriction |
Linguistic and Cultural Notes
1. Sustained contact between languages and cultures triggers changes in both languages. If one group perceives the other group to be socially or politically higher then it is likely that the ‘dominated’ language will be impacted more than the ‘dominating’ language. In the case of Hindi and English, we see more influences of English on Hindi than the other way around. In the case of Hindi-Urdu contact, Hindi was impacted considerably during the period when Persian was the court language. In modern India, both Hindi and Urdu are in contact with each other at a different level and both have impacted each other. It seems that Hindi contains a greater number of Persian and Arabic loanwords than Urdu contains Sanskrit loanwords. Linguistic elements that cause changes include sounds, words, and also textual patterns to some extent.
2. India has gone through intense dialogues between various models of economic management ranging from closed-door socialism to open-door market economy. On one hand, India has benefited from the experience of other nations. While, on the other hand India has also evolved her own model where government has a more regulatory role and thousands of NGOs make a significant contribution in social transformation.
Language Development
The two following vocabulary categories are designed for you to enlarge and strengthen your vocabulary. Extensive vocabulary knowledge sharpens all three modes of communication, With the help of dictionaries, the internet and other resources to which you have access, explore the meanings and contextual uses of as many words as you can in order to understand their many connotations.
Semantically Related Words
Here are words with similar meanings but not often with the same connotation.
आतंकवाद
खबर दृष्टिकोण इजारेदारी आत्मनिर्भर विनियम प्रतिबंध |
दहशतगर्दी
समाचार नज़रिया एकाधिकार स्वतंत्र कानून, अधिनियम, नियम पाबंदी |
Structurally Related Words (Derivatives)
अपेक्षा, अपेक्षित, अनपेक्षित, सापेक्ष, अपेक्षाकृत
आतंक, आतंकवाद, आतंकवादी
सम, समता, विषमता
क्षेत्र, क्षेत्रीय
संतुलन, असंतुलन
परिणाम, परिणामस्वरूप, परिणामात्मक, परिणामतः
दावा, दावेदार
विशेष, विशेषता, विशेषज्ञ, विशेषज्ञता, विशिष्ट, विशिष्टता, वैशिष्ट्य
रेखा, रेखांकित
त्रास, त्रस्त
युक्त, संयुक्त
उदार, उदारता, उदारवाद, उदारवादी, औदार्य, उदारीकरण
भाषा, परिभाषा, परिभाषित
समाजवाद, समाजवादी
धरा, धराशायी
पूंजी, पूंजीपति, पूंजीवाद, पूंजीवादी, पूँजीकरण
प्रथम, प्राथमिक, प्राथमिकता
कर, कराधान
सीमा सीमान्त
Comprehension Questions
1. What is the author’s attitude in this article?
a. sarcastic
b. disapproving
c. analytical
d. emotional
2. About globalization, which one of the following is stated or implied in the article?
a. Consumerism is the direct cause of all kinds of crimes.
b. Socialist block countries utterly opposed neo-liberalism.
c. Media ads will be critiqued for the correctness of their claims.
d. Multiple political parties of India supported globalization.