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Economic Crisis from Globalization
Module 12.4
भूमंडलीकरण – 4
भूमंडलीकरण से आर्थिक संकट
यह आर्थिक संकट बाहर से आया है लेकिन इसका हल देश के अंदर है
क्या भारत एक बार फिर 1991 की तरह के आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ा है? क्या एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की कहानी शुरू होने से पहले ही पटाक्षेप के करीब पहुँच गई है? डालर के मुकाबले गिरते रूपये और लुढ़कते शेयर बाजार के बीच संसद से लेकर गुलाबी अखबारों और चैनलों तक में यही सवाल छाए हुए हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था की डगमगाती स्थिति को लेकर आशंकाओं और घबराहट का माहौल है। हालाँकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी अपने कई देशी-विदेशी निवेशकों को और बाजार के साथ-साथ देश को अर्थव्यवस्था की सेहत को लेकर आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन नार्थ ब्लाक से लेकर दलाल स्ट्रीट तक फैली घबराहट किसी से छुपी नहीं है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत का हाल बतानेवाले अधिकांश संकेतक लड़खड़ाते हुए दिख रहे हैं। रूपये और शेयर बाजार के साथ-साथ औद्योगिक उत्पादन वृद्धि में फिसलन, बढ़ता वित्तीय व्यापार और चालू खाते का घाटा, जी.डी.पी की गिरती वृद्धि दर और ऊपर चढ़ती महंगाई दर जैसे संकेतकों से साफ़ है कि अर्थव्यवस्था पटरी से उतर रही है।
यह भी सही है कि आंकड़ों में कई संकेतक 1991 के संकट के करीब पहुँच गए हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि स्थिति चिंताजनक है लेकिन इस आधार पर यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि अर्थव्यवस्था 1991 की तरह के संकट में फंसने जा रही है या उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की कहानी का पटाक्षेप हो गया है।
कहने की जरूरत नहीं है कि मौजूदा आर्थिक संकट कई घरेलू और वैदेशिक कारकों का मिलाजुला नतीजा है। इन कारकों में संकट में फंसी वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़ती अनिश्चितता खासकर यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के गहराते संकट का असर दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहा है।
एक भूमंडलीकृत वैश्विक अर्थव्यवस्था के अभिन्न हिस्से के रूप में भारत भी इसके नकारात्मक प्रभावों से अछूता नहीं है। इस मायने में वित्तमंत्री की यह सफाई एक हद तक सही है कि रूपये और शेयर बाजार में गिरावट आदि के लिए यूनान सहित यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाओं का संकट जिम्मेदार है।
लेकिन प्रणब मुखर्जी यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। पूरा सच यह है कि मौजूदा संकट के लिए सबसे अधिक जवाबदेही आँख मूंदकर आगे बढ़ाई गई नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों की है जिसके तहत भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी और उत्पादों के लिए न सिर्फ अधिक से अधिक खोला गया बल्कि उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने के लिए घरेलू नीतियों को बड़ी विदेशी पूंजी खासकर आवारा पूंजी के अनुकूल बनाया गया।
स्वाभाविक तौर पर अर्थव्यवस्था के एक हिस्से खासकर घरेलू बड़ी पूंजी को इसका फायदा हुआ है तो प्रतिकूल दौर में इसके बुरे नतीजों को भी भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। यही नहीं, पिछले डेढ़-दो दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता विदेशी पूंजी खासकर आवारा पूंजी पर बढ़ती चली गई है। यह निर्भरता इस खतरनाक हद तक बढ़ गई है कि विदेशी पूंजी को खुश करने के लिए सरकारें उनकी सभी जायज-नाजायज मांगें मानने के लिए मजबूर हो गई हैं।
उदाहरण के लिए, वोडाफोन टैक्स विवाद और आयकर कानून में मौजूद छिद्र को नए बजट में पीछे से संशोधन करके सुधारने या सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2 जी मामले में 122 टेलीकाम लाइसेंसों को रद्द करने और अब ट्राई द्वारा उनकी नीलामी के लिए ऊँची रिजर्व कीमत तय करने जैसे हालिया प्रकरणों को लीजिए जिन्हें देश में निवेश का माहौल बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और जिसे लेकर विदेशी निवेशक और कार्पोरेट्स इतने नाराज बताये जा रहे हैं कि वे न सिर्फ नया निवेश करने के लिए तैयार नहीं हैं बल्कि देश से पूंजी निकाल कर ले जा रहे बताये जा रहे हैं।
दरअसल, यह एक तरह का भयादोहन है कि अगर आपने बड़ी देशी-विदेशी पूंजी को खुश नहीं किया तो वे देश छोड़कर चले जाएंगे जिससे अर्थव्यवस्था संकट में फंस जाएगी। उदाहरण के लिए रूपये की गिरती कीमत और लड़खड़ाते शेयर बाजार को ही लीजिए। तथ्य यह है कि शेयर बाजार पूरी तरह से बड़े विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफ.आई.आई) यानी आवारा पूंजी और कुछ बड़े घरेलू निवेशकों के चंगुल में है और वे अपनी मनमर्जी से उसे चढ़ाते-गिराते रहते हैं।
यही कारण है कि शेयर बाजार का मतलब सट्टेबाजी हो गई है। दूसरे, इस आवारा पूंजी को किसी देश की अर्थव्यवस्था से ज्यादा अपने मुनाफे की चिंता होती है। नतीजा यह कि जब तक उसे भारतीय बाजारों में मुनाफा दिखता है, आवारा पूंजी का प्रवाह बना रहता है। बाजार अकारण और अतार्किक ढंग से चढ़ता रहता है। उसके साथ आनेवाले डालर के कारण रुपये की कीमत भी चढ़ती रहती है।
लेकिन जैसे ही घरेलू या वैदेशिक माहौल बदलता या बिगड़ता है, आवारा पूंजी को सुरक्षित ठिकाने की खोज में देश छोड़ने में देर नहीं लगती है। यहाँ यह याद दिलाना जरूरी है कि यह स्थिति भी अर्थव्यवस्था के लिए अलग तरह के संकट खड़ा कर देती है। साल-डेढ़ साल पहले तक सरकार रूपये की बढ़ती कीमत और विदेशी मुद्रा के भारी भण्डार के कारण पैदा होनेवाली समस्याओं के कारण परेशान थी।
यहाँ तक कि उसने डालर खपाने के लिए विदेशों में डालर ले जाने के नियम ढीले कर दिए। इसका उल्टा असर अब दिखाई पड़ रहा है। इस बीच, कुछ हद तक वैदेशिक और कुछ अपनी मनमाफिक नीतियों और फैसलों के न होने के कारण विदेशी पूंजी देश से निकल रही है। इससे शेयर बाजार के साथ रूपये की कीमत भी गिर रही है और अर्थव्यवस्था संकट में फंसती हुई दिख रही है।
इसके साथ ही यह भी सच है कि देशी-विदेशी निवेशक मौजूदा संकट का फायदा उठाने में लगे हैं। शेयर और मुद्रा बाजार में जमकर सट्टेबाजी हो रही है। एफ.आई.आई से लेकर बड़े निजी देशी-विदेशी बैंक/वित्तीय संस्थाएं और कार्पोरेट्स से लेकर निर्यातकों तक सभी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं और वित्त मंत्रालय से लेकर रिजर्व बैंक तक इसलिए हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं कि बाजार में हस्तक्षेप से गलत सन्देश जाएगा और बाजार को अपना काम करने देना चाहिए।
लेकिन यह जानते हुए भी कि बाजार में सट्टेबाजी चल रही है और खुलकर मैनिपुलेशन हो रहा है, सरकार का अनिर्णय हैरान करनेवाला है। सच पूछिए तो असली ‘नीतिगत लकवा’ यह है जहाँ सरकार जानते-समझते हुए भी सट्टेबाजों के खिलाफ कार्रवाई करने में घबराती है।
लेकिन नव–उदारवादी आर्थिक सुधारों के समर्थक मौजूदा संकट के लिए यू.पी.ए सरकार के अनिर्णय और कथित ‘नीतिगत लकवे’ को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वे सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह न सिर्फ आर्थिक सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाये बल्कि आम लोगों पर बोझ बढ़ानेवाले कड़े फैसले करे।
सवाल यह है कि क्या भारत एक ‘बनाना रिपब्लिक’ है जहाँ विदेशी पूंजी और कार्पोरेट्स जो चाहे करें और सरकार चुपचाप देखती रहे? दूसरे, क्या देश को निवेश खासकर विदेशी निवेश को आकर्षित करने के नाम हर कीमत चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए? यहाँ तक कि आम लोगों खासकर गरीबों-आदिवासियों के हितों से लेकर पर्यावरण तक को कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए?
ये सवाल बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण हैं। इन्हें अनदेखा करके संकट से निपटने के नाम पर विदेशी पूंजी और कार्पोरेट्स को और रियायतें देने का एक ही नतीजा होगा- और बड़े संकट को निमंत्रण। सच पूछिए तो मौजूदा संकट उतना बड़ा संकट नहीं है जितना बढ़ा-चढ़ाकर गुलाबी मीडिया बता रहा है।
यह सिर्फ देश में बड़े आर्थिक संकट का डर दिखाकर और घबराहट का माहौल बनाकर अपने मनमाफिक नीतियां बनवाने और फैसले करवाने की कोशिश है। इस समय जरूरत कड़े फैसलों और किफायतशारी (आस्टैरिटी) के नाम पर लोगों पर और बोझ डालने के बजाय देश के अंदर अपने संसाधनों के बेहतर और प्रभावी इस्तेमाल के जरिये घरेलू मांग बढ़ाने और इसके लिए सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की है। इस मायने में यह संकट बाहर से आया है लेकिन इसका हल बाहर नहीं, देश के अंदर खोजा जाना चाहिए।
– आनंद प्रधान
(‘दैनिक भास्कर‘ में 18 मई, 2012 को प्रकाशित लेख)
उपयोगी शब्दार्थ
( shabdkosh.com is a link for an onine H-E and E-H dictionary for additional help)
आर्थिक संकट m
मुहाने पर खड़ा होना पटाक्षेप m कारकm वित्त मंत्री m/f निवेशक m/f संकेतक m अनिश्चितता f नकारात्मक प्रभाव m जवाबदेही f आवारा पूंजी f नीलामी f भयादोहन m संस्थागत सट्टेबाजी f अतार्किक विदेशी मुद्रा f नीतिगत लकवा m सार्वजनिक |
economic crisis
standing at the entry point dropping of the stage curtain factor finance minister investor indicator uncertainty negative impact answerability, accountability hot money (foreign fleeting investment) auction engendered by fear institutional speculative bargaining illogical foreign currency policy-related paralysis related to people in general, general |
Linguistic and Cultural Notes
1. This article is a good example of a good mix of Sanskritized, English and Urdu vocabulary. While some ‘borrowed’ words in Hindi have been fully assimilated others have not. Words like मौजूदा, ख़ासकर, फ़ायदा, अख़बार, माहौल, फ़ैसला and many others used in this article are widely understood, but there are others like किफ़ायतशारी which are not readily understood by most Hindi speakers. The same is true of the influence and impact of English in this article. Besides lending words, English also impacts new coinages in Hindi. For example, the word संकेतक has been coined to translate the English word ‘indicator’ and the word कारक has been coined to translate the English word ‘factor’.
2. This is an old article. Pranab Mukerjee, who was India’s finance minister from 2009 to 2012, has been serving as India’s president since July 2012.
Language Development
The two following vocabulary categories are designed for you to enlarge and strengthen your vocabulary. Extensive vocabulary knowledge sharpens all three modes of communication, With the help of dictionaries, the internet and other resources to which you have access, explore the meanings and contextual uses of as many words as you can in order to understand their many connotations.
Semantically Related Words
Here are words with similar meanings but not often with the same connotation.
प्रभाव
जवाबदेही सार्वजनिक |
असर
उत्तरदायित्व आम |
Structurally Related Words (Derivatives)
अर्थ, आर्थिक, अर्थशास्त्र
निवेश, निवेशक
संकेत, संकेतक
निश्चित, सुनिश्चित, अनिश्चित, अनिश्चितता
जवाब, जवाबदेही
नीलाम, नीलामी
सट्टा, सट्टेबाज, सट्टेबाजी
तर्क, तर्क-वितर्क, कुतर्क, तर्क-संगत, तार्किक, अतार्किक
देश, देशी, देसी, स्वदेशी, परदेश, परदेस, परदेसी, विदेश, विदेशी
Comprehension Questions
1. According to the author, which implication of FDI is not mentioned in the article?
a. Regulatory role of the Indian government is subject to exploitation.
b. Outside forces manipulate Indian stock market for their benefit.
c. India’s financial institutions are reaping benefits from the situation.
d. FDI is the direct cause of the falling value of Indian rupee.
2. According to the author, what is the root cause of India’s problems?
a. government policies
b. Foreign Direct Investment
c. Indian corporations
d. Investors’ motivation
Supplementary Material Module 12
Reading
1.नए वित्तीय वर्ष के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग- आलेख
प्रकाशित Mon, अप्रैल 04, 2011 पर 14:35 | स्रोत : Moneycontrol.com
सीएनबीसी
2.जोड़ी बेमिसाल
http://www.moneymantra.net.in/details
3.नव उदारवादी पूंजीवाद–बाज़ारवाद की व्यवस्थागत बीमारी का नतीजा है यह वैश्विक आर्थिक संकट
http://kaushalsoch.blogspot.in/2009/05/blog-post_09.html
4.महंगाई नव उदारवाद की देन है
http://www.chauthiduniya.com/2011/01/mahangai-nav-udaravad-ki-den-he.html
5.वित्तीय संकट के बाद वैश्वीकरण और विकास
अनुवाद-विजय कुमार मल्होत्रा
6.स्वास्थ्य क्षेत्र थाम सकता है आर्थिक विकास का झंडा
अरविंद सिंघल / July 05, 2009
स्रोत : बिज़नेस स्टैंडर्ड Friday, June 04 ,2010
अनुवाद : विजय कुमार मल्होत्रा
7. India’s Globalization: Evaluating the Economic consequenes – Baldev Raj Nayar
http://scholarspace.manoa.hawaii.edu/bitstream/handle/10125/3523/PS022.pdf?seque..
8 .बाजार ने करवट बदली, तो हिंदी में समाचार भी बदले – अरविंद दास
http://mohallalive.com/2013/05/08/a-little-part-of-news-in-hindi-1/
9. विश्व व्यापार संगठन और भारतीय अर्थ व्यवस्था
books.google.com/books?isbn=8126903678 –
Ram Naresh Pandey – 2004
http://books.google.com/books?
Listening
1. How Devaluation of RUPEE Against Dollar leads to collapse BHAR
http://www.youtube.com/watch?v=LCYoq8lVkzA
Uploaded on Nov 21, 2011
Please watch this video and know How Devaluation of RUPEE Against Dollar Gave Loss of Rs 245 Lakh Crore in one year.
2. News X: Rupee falls past 65 to dollar to record a new low
http://www.youtube.com/watch?v=wvv9_ctY7TE&list=TLYOZXgp2GLeQ
3.Globalisation and the Indian Economy 001
https://www.youtube.com/watch?v=QhJm9XBNpVw
4.Globalisation and the Indian Economy 003
https://www.youtube.com/watch?v=uHfB5lHYJyA
5.Globalization and International Trade
https://www.youtube.com/watch?v=KtY9stUJ8L4
6.एशियाई बाज़ार
http://hindi.moneycontrol.com/tv/cnbc-awaaz-shows/subah-laxmi_2011-07-04.html
Discussion Ideas Module 12
1. For the last couple of decades, we have been seeing an emerging middle class in the BRIC countries, which in turn has created increased demand for consumer goods. Research the performance of BRIC countries and suggest strategies that you would like to recommend for investing in these countries?
2. In pairs, discuss which sections of the Indian economy have benefited most and been hurt most by globalization.
3. Debate whether some aspects of business education in india need to change in order to create better global business leaders.
4. Debate in pairs on the importance of free media in a country like India. If everyone is allowed to start their own media stations and broadcast freely their thoughts, what would the situation be like?
5. Present a 3-5 minute speech on how India’s economy was affected during the global crisis. What would have been different if India had not been such a big part of the global economy and had been shielded from outside companies and investments as in the 1980s?
6. Debate: Have the benefits of globalization in India outweighed the costs?
7. Discussion: What aspects of India’s business or culture have gained prominence around the world due to globalization?
8. Globalization of trade has brought many advantages to big coporations and investors. Make a bullet-point summary of such advantages.
9. Globalization has brought out massive migration of people and ideas. What are the implications of these phenomena?
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